Monday, January 20, 2014

रिश्तों को टूटने से पहले सहेज लीजिए

http://www.rishtonkasansar.com/FreeReg.aspx
कहते हैं कि जोडि़याँ स्वर्ग में बनती हैं। धरती पर तो इनका मिलन भर होता है। भारतीय संस्कृति में शादी को जन्म-जन्मांतर का साथ माना गया है। शायद इसी बात को हमारे यहीं लोग शब्दशः स्वीकार करते हुए जिंदगी भर सुख-दुख में एक-दूसरे को साथ निभाते चले आएं हैं। इसी वजह से भारत में तलाक की दर अन्य देशों की तुलना में काफी कम थी लेकिन पिछले दो दशकों में यह परिदृश्य काफी बदल गया है।

देश के महानगरों में तलाक के मामले काफी बढ़ रहे हैं। महानगरों के साथ-साथ छोटे शहरों के उच्च और मध्यम वर्ग में शादियों का दिन-प्रतिदिन टूटना अब मनोवैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय हो गया है। जहां तलाक को पहले अंतिम विकल्प के रूप में देखा जाता था वहीं अब कई युवा दंपत्ति इसे समस्याओं के समाधान के एकमात्र विकल्प के रूप में देखते हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि इन दिनों फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी 25 से 35 आयु वर्ग के दंपतियों द्वारा और वो भी शादी के महज 3 साल के भीतर ही दी जा रही है। निश्चय ही रिश्तों का जुड़ना और फिर इस तरह से टूटना सिवाय दर्द के कुछ नहीं देता। जो पति-पत्नी बच्चों के किशोरावस्था तक पहुँचने में यह निर्णय लेते हैं, उनके बच्चों को इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ता है। अध्ययनों के मुताबिक जो बच्चे माता-पिता के अलगाव की त्रासदी झेलते हैं, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास की भी खासी कमी देखी गई है। वे जरा-सी बात पर नाराज हो जाते हैं, उनमें नशे की लत लगने की संभावना काफी बढ़ जाती है। ऐसे बच्चे अपने आपको बहुत अकेला महसूस करने लगते हैं। लेकिन, क्या रिश्तों को टूटने से पहले ही नहीं संभाला जा सकता? बातों को इतना बड़ाया ही क्यों जाए कि वे इस कगार तक पहुंचे!

जब भी पति-पत्नी को लगे कि अब उनके रिश्ते में प्यार खत्म हो रहा है या आपसी समझ घटती जा रही है तो वे मिल-बैठकर बात कर सकते हैं। एक-दूसरे के साथ वक्त बिताकर समस्याओं का समाधान निकाल सकते हैं। उनके मन में जो भी डर, असुरक्षा की भावना या शिकायत हो, उसे बातचीत के जरिए सुलझाने की कोशिश कर सकते हैं। यदि फिर भी दम्पति आपस में अपनी समस्या नहीं सुलझा सकते तो इसके लिए ‘मैरिज काउंसलर’ और ‘मैरिज थैरेपी’ की मदद ली जा सकती है। मैरिज काउंसलर दोनों पक्षों की बात जानकर आपको सही सुझाव और सलाह देते हैं। इससे आप अपने रिश्ते को टूटने से बचा सकते हैं। मैरिज थैरेपी भी रिश्तों को बनाए रखने के लिए कारगर उपाय है। थैरेपी में मनोचिकित्सक काउंसलिंग के जरिए आपकी मदद कर सकते हैं।

यदि आपके लिए किसी प्रोफेशनल काउंसलर की सुविधा लेना संभव न हो तो आप परिवार के किसी ऐसे सदस्य या दोस्त, जो आप दोनों को भली-भांति जानता हो व दोनों के प्रति मन में समान भाव रखता हो, के साथ बैठकर अपनी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करें। पति-पत्नी चाहें तो व्यवहार में बदलाव से भी समस्याओं को सुलझा सकते हैं। पति-पत्नी में तलाक की मुख्य की वजह शराब का सेवन, मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना, विवाहेत्तर संबंध, आधुनिक जीवन शैली के कुप्रभाव, अहम, अवसाद, उपेक्षा, वैचारिक मतभेद व गलतफहमी हैं। सहनशक्ति और सामंजस्य की मंशा का न होना भी अब संबंध-विच्छेद के लिए जिम्मेदार हैं। अक्सर पति-पत्नी को लगता है कि तलाक लेने से उनकी सारी समस्याओं का हल हो जाएगा, जबकि यह सच नहीं है। व्यवहार गलत होने पर आप किसी के भी साथ खुश और सुखी नहीं रह सकते हैं। फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। परिवार और समाज में रहने के लिए कुछ समझौते और बदलाव तो जरूरी हैं। यदि आप वह नहीं करना चाहते हैं तो इन बातों पर शादी से पहले ही विचार किया जाना चाहिए।

शादी के बाद अलग होने की नौबत न आए, इसके लिए बेहतर होगा कि आप जिससे शादी करने जा रहे हैं उसे जान लें। लड़का-लड़की आपस में एक-दूसरे के रहन-सहन और आदतों पर एक-दूसरे से खुलकर बात करें। एक-दूसरे से अपनी अपेक्षाओं को अवगत करा दें और किसी प्रकार का कोई दुराव-छुपाव न रखें, ताकि आप तलाक की त्रासदी झेलने से बच सकें।