Thursday, November 21, 2013

मेरे सपनों में एक ऐसा हसीं..

बदलते समय की मांग के अनुसार पुरुषों को स्त्रियों की बदलती चाहतों को समझने की जरूरत है। अगर आप एक परफेक्ट लाइफ पार्टनर की तलाश में हैं तो पहले खुद परफेक्ट बनिए। जी हां, आज की लड़कियां जरा डिमांडिंग हो गई हैं। पार्टनर को चूज करने के लिए उनके अपने मानक हैं। मिल्स एंड बून्स टाइप का रोमांस उन्हें आज भी पसंद है, लेकिन अपनी शख्सीयत के साथ समझौते की कीमत पर नहीं। सखी डाल रही है आज की वेल-इन्फॉ‌र्म्ड लड़कियों के अनुसार लेटेस्ट हस्बैंड मटीरियल पर नजर।
बात सपनों के शहजादों की हो तो आजकल की कुडि़यां जरा भी कॉम्प्रोमाइज नहीं करतीं। वे जमाने लद गए जब लड़कियां ट्रे लेकर लड़के वालों के सामने आती थीं और उनके अजीबोगरीब सवालों को झेलती थीं। पास हो गई तो शादी वरना रिजेक्टेड का टैग लग जाता था। आज की लड़कियां लड़कों के मानकों पर खरी उतरने के बजाय अपने मानकों पर लड़कों को परखती हैं। अब बॉल लड़कियों के कोर्ट में होती है। हमारे समाज में आए इस बदलाव की वजह है लड़कियों को मिल रहा इंटरनेशनल एक्सपोजर। शादी करके जीवन भर समझौता करने के बजाय आज की लड़की अपनी पसंद से शादी करके जीवन भर खुश और सेटल्ड रहने में यकीन रखती है।
हैदराबाद के एक बीपीओ फर्म की मैनेजर रितिका शादी करना चाहती हैं, लेकिन अपना लाइफ पार्टनर चुनने के लिए उन्होंने कुछ मानक भी बना रखे हैं। रितिका को मिल्स एंड बून्स किस्म के टॉल, डॉर्क एंड कनवेंशनली हैंडसम लड़कों में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्हें चाहिए एक ऐसा लड़का जो उनके जीवन में पॉजिटिव वाइब्स लेकर आए। वह कहती हैं, 'मुझे एक डाउन टु अर्थ लड़के की तलाश है। जो मेरा पति नहीं, बल्कि दोस्त बनकर साथ निभाए। उसका सेंस ऑफ ह्यूमर बेहतरीन और सोच सिंपल होनी चाहिए।'
आज की लड़कियों के गले टिपिकल डॉमिनेटिंग हस्बैंड का कॉन्सेप्ट नहीं उतरता। उन्हें चाहिए ऐसा इंसान जो घर के हर निर्णय में उनकी राय को अहमियत दे। इंदौर के एक एनजीओ में काम कर रही सुहान अपने पार्टनर में मेल शॉविनिज्म एटीट्यूड एकदम नहीं चाहतीं। सुहान कहती हैं, 'मैंने पुरुषों के डॉमिनेटिंग एटीट्यूड को बहुत करीब से देखा है। मैंने अपनी मां को बहुत सहते हुए देखा है। मैं अपने लिए वैसा जीवन नहीं चाहती थी। इसलिए मैंने पढ़ाई की और करियर बनाने के लिए मेहनत की। मैं एक ऐसा पार्टनर चाहती हूं जो जीवन की हर बुराई के लिए मुझे गुनहगार ठहराने के बजाय मेरे साथ मेरे सपोर्ट में खड़ा हो। जो मेरी सफलता के लिए उतना ही एक्साइटेड हो जितना कि मैं हूं।'
दिल्ली की एक पब्लिक रिलेशंस कंपनी में काम कर रही कार्तिका अपने पार्टनर में स्त्रियों के प्रति सम्मानजनक रवैया प्रेफर करेंगी। कार्तिका कहती हैं, 'ज्यादातर पुरुष आज भी लड़कियों की तरक्की पसंद नहीं करते। मैं अपने लिए एक सैडिस्ट हस्बैंड नहीं चाहती। उसमें इतनी कैलिबर होनी चाहिए कि वह तरक्की कर सके और इतनी सकारात्मकता हो कि मेरी तरक्की पचा सके।'
स्त्रियों की चाहत समझने के लिए मेल गिबसन को एक लड़की का रूप धरने की जरूरत पड़ी थी। अगर आप भी आज की लड़की की बदलती हसरतों को समझना चाहते हैं तो जरा उनके स्तर पर आइए। बात बन जाएगी।
सर्वे के अनुसार..
रिश्तों का संसार  डॉट कॉम
डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट रिश्तों का संसार डॉट कॉम पर बने प्रोफाइल्स के आधार पर देखें तो आजकल की लड़कियों की शादी के मामले में पसंद कुछ समय पहले से एकदम अलग हो चुकी है। इस मैट्रिमोनियल पोर्टल के डेटा पर नजर डालें। लड़कियों की पसंद कुछ ऐसी है-
1. प्रोफेशनल्स हैं पहली पसंद- प्रोफेशनल लड़कों को मिल रहे हेवी पैकेजेज उन्हें शादी के लिए मोस्ट एलिजिबल कैटिगरी में डालते हैं। आंकड़ों की मानें तो प्रोफेशनली क्वालिफाइड लड़कों को एक आम शख्स के मुकाबले 40 प्रतिशत ज्यादा रिस्पांस मिलते हैं। लड़कियों के एजुकेशन लेवल में आ रही दिनोदिन तरक्की और बदलती वरीयताएं इस ट्रेंड की मुख्य वजह है। लड़कियां खुद बेस्ट क्वालिफिकेशंस हासिल कर रही हैं, इसलिए वे अपने पार्टनर्स के एजुकेशन लेवल पर समझौता नहीं करतीं। साथ ही लड़कियां अब पहले के मुकाबले ज्यादा करियर कॉन्शस हो गई हैं। उन्हें अपने करियर में समझौता न करना पड़े, इसलिए भी वे प्रोफेशनली क्वालिफाइड लड़कों को तरजीह देती हैं। यह माना जाता है कि अगर लड़का खुद एक मुकाम पर पहुंचा है तो उसे दूसरे के करियर का महत्व पता होगा।
2. बड़े शहरों के प्रति आकर्षण- मेट्रो सिटीज के लिए लड़कियों का स्ट्रॉन्ग बायस होता है। किसी छोटे शहर में रहने वाले लड़के के मुकाबले मेट्रो या मिनी मेट्रो में रहने वाले लड़के को 30 प्रतिशत ज्यादा रिस्पांस मिलते हैं। वजह साफ है- लड़कियां बेहतर जीवन के लिए बड़े शहरों का रुख करना चाहती हैं। बड़े शहरों में न केवल लड़कियों को बेहतर लाइफस्टाइल के मौके मिलते हैं, बल्कि उनके करियर के लिए भी बेहतर अवसर होते हैं।
3. प्रेजेंटेबल होना है जरूरी- लड़का चाहे जितना भी टैलेंटेड हो, अगर वह प्रेजेंटेबल नहीं है तो उसकी मार्केट जरा डाउन ही रहती है। लड़कियों का रुझान यही दर्शाता है। हालांकि यह मानक कुछ-कुछ नौकरी के इंटरव्यू की ही तरह है, लेकिन आज की लड़कियां पर्सनालिटी फैक्टर को बहुत इंपॉर्टेस देती हैं।
एक्स्ट्रा क्वालिटीज जरूरी..
1. रोमांस में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। मौका कोई भी हो, लड़की की पर्सनैलिटी और पसंद के अनुसार गिफ्ट दीजिए तो इंप्रेस करने में आसानी होगी। हां, पब्लिक डिस्प्ले ऑफ अफेक्शन के मामले में पहले से पसंद-नापसंद जान लीजिए, तभी अटेंप्ट कीजिएगा।
2. पुराने किस्म के विचारों से तौबा कीजिए और जरा आधुनिक सोच अपनाइए। खासकर पुरुष और स्त्री की बराबरी के मामलों में। अपनी पार्टनर की क्षमताओं और अधिकारों को कमतर आंकने की गुस्ताखी करने से बचें।
3. घर के कामों में हाथ बंटाने की आदत डालें। अपनी पार्टनर की मदद के लिए अपने शरीर को कष्ट देना अच्छे रिश्ते का आधार बन सकता है।
4. इंटेलिजेंस बेहद जरूरी है। आज की लड़कियां अपने पार्टनर में एजुकेशन के साथ-साथ अवेयरनेस का लेवल भी चेक करती हैं। इसलिए अपडेट रहें।
5. धर्म हो या राजनीति, कट्टरपंथी विचारधारा आज की लड़कियों के गले नहीं उतरती। धार्मिक होने से ज्यादा आध्यात्मिक विचारधारा पर जोर दिया जा रहा है। Read More

Tuesday, November 12, 2013

निजी बनते प्रोफेशनल रिश्ते

प्रोफेशनलिज्म का पहला नियम है कि ऑफिस के रिश्तों को घर तक नहीं ले जाना चाहिए। लेकिन ऑफिस में घंटों साथ बिताने पर रिश्ते निजी स्तर तक आ ही जाते हैं। ऐसे ही रिश्तों को ऑफिस स्पाउस कहते हैं। इन रिश्तों के आपके करियर पर सकारात्मक और नकारात्मक, दोनों तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं। हम बता रहे हैं कैसे।

आपको क्या पसंद है और क्या नापसंद, आपकी आदतें, आपकी कमजोरियां और आपके गहरे राजों को बखूबी समझने वाला अगर कोई व्यक्ति आपके साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारे तो नजदीकियां आना स्वाभाविक है। कुछ ऐसे ही होते हैं 'ऑफिस स्पाउस'। ऑफिस के ड्यूटी ऑवर्स के दौरान किसी खास से कुछ ऐसी केमिस्ट्री बन जाती है कि काम करने में और भी ज्यादा मन लगता है।

लांग वर्किग ऑवर्स आजकल लगभग हर प्रोफेशन का हिस्सा बनते जा रहे हैं। और साथ ही बढ़ते जा रहे हैं प्रोफेशनल रिश्तों के दायरे। ऑफिस की चहारदीवारी में पनपते हैं निजी रिश्ते। एक सर्वे के अनुसार एक ही ऑफिस में काम करने वाले स्त्री-पुरुष कई बार इतने करीब हो जाते हैं कि उनमें पति-पत्नी जैसा संबंध विकसित होने लगता है। ऐसे रिश्तों में पार्टनर्स को 'ऑफिस स्पाउस' कहते हैं। हिंदी फिल्मों में इस कॉन्सेप्ट को बखूबी प्रयोग किया गया है। अब्बास-मस्तान की फिल्म 'रेस' में कट्रीना कैफ और सैफ अली खान व अनिल कपूर और समीरा रेड्डी के बीच भी ऐसा ही रिश्ता दिखाया गया है।

क्या होते हैं ऑफिस स्पाउस?

अगर आप भी अपने ऑफिस में विपरीत सेक्स के किसी व्यक्ति पर बेहद भरोसा करते हों, उनसे अपने सबसे खास राज शेयर करते हों, उनके साथ हंसी-मजाक करते हों या उनके बिना आपका ऑफिस का जीवन ठहर सा जाए तो समझिए कि आपके पास भी एक 'ऑफिस स्पाउस' है। ऑफिस के 12-14 घंटों के वर्क प्रेशर के बीच अगर कोई आपके लिए एक शॉक-एब्जॉर्बर का काम करता है। भावनात्मक सहयोग देने के साथ वह आपकी केयर करता है और विपरीत सेक्स का है तो उसके प्रति आकर्षण पनपना स्वाभाविक है। सर्वे की मानें तो ऑफिस स्पाउसेज की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक तो लगभग 32 प्रतिशत कामकाजी लोग ऑफिस स्पाउस की बात मानते हैं। वे मानते हैं कि ऑफिस में उनका अॅपोजिट सेक्स के व्यक्ति के प्रति आकर्षण है। वे मानते हैं कि ऑफिस में उनका एक खास रिश्ता है जो उनके निजी जीवन के इतर उनके जीवन में बेहद अहम जगह रखता है। ऐसे रिश्तों में डेटिंग, हल्का-फुल्का फ्लर्ट और कुछ हद तक सेक्स भी जगह बना लेता है। लेकिन मनोवैज्ञानिक इस कॉन्सेप्ट से उतना इलेफाक नहीं रखते जितनी तेजी से 'ऑफिस स्पाउस' टर्म का प्रयोग प्रचलन में आ रहा है।

मनोवैज्ञानिक समीर पारेख कहते हैं, 'ऑफिस स्पाउस शब्द का प्रयोग अपने आपमें गलत है। स्पाउस शब्द का संबंध कमिटमेंट से होता है।' गौरतलब है कि यहां हम वर्कप्लेस अफेयर की बात नहीं कर रहे। वर्कप्लेस अफेयर और ऑफिस स्पाउस में बेसिक फर्क होता है कि वर्कप्लेस अफेयर आकर्षण के आधार पर होते हैं, जबकि ऑफिस स्पाउस रिलेशंस दो लोगों के बीच की केमिस्ट्री से बनते हैं।

ऑफिस स्पाउस का निजी जीवन पर असर

हिंदी फिल्मों के वे सीन बेहद आम हुआ करते थे जब बॉस की अपनी सेक्रेटरी के साथ नजदीकियां इतनी बढ़ जाती थीं कि ऑफिस का रिश्ता बेडरूम तक चला आता था। जाहिर है, ऐसे रिश्तों से पारिवारिक माहौल पर बुरा असर भी पड़ता था। करियर बिल्डर डॉट कॉम द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार 20 प्रतिशत गृहस्थियों में ऑफिस स्पाउस के होने से उलझनें पैदा हो जाती हैं। ऑफिस स्पाउस के साथ नजदीकियां कई बार इतनी बढ़ जाती हैं कि आपके रियल लाइफ पार्टनर के साथ आपकी ट्यूनिंग फीकी पड़ सकती है। ऐसी स्थितियों का घर तोड़ने में बड़ा हाथ होता है। मनोवैज्ञानिकों की मानें तो रिश्तों में दायरे बनाने की जरूरत यहीं पड़ती है। समीर कहते हैं, 'साथ में ज्यादा समय बिताने से दो लोगों में नजदीकियां आना स्वाभाविक है, लेकिन उन करीबियों को ऑफिस के चहारदीवारी तक सीमित रखना व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है। अपने रिश्ते को काम तक सीमित रखना बेहद जरूरी है। यानी संतुलित जीवन के लिए दायरे बनाना बेहद जरूरी है।'

करियर के लिए भी खतरनाक

ऑफिस स्पाउस होने से आपको मानसिक सुकून और क्रिएटिव स्पेस तो मिलती है लेकिन इससे आपके करियर पर बुरा असर भी पड़ सकता है।
1. संभव है कि आपके दूसरे कलीग्स आपके और आपके ऑफिस स्पाउस के रिश्ते के मामले में उतने सहज न हों और आपके काम में नुकसान पहुंचाने की कोशिश करें।
2. रिश्ते की निजता काम पर अकसर दिख ही जाती है जिसका आपके परफॉर्मेस पर बुरा असर भी पड़ सकता है।
3. अगर आप अपने स्पाउस को काम के मामले में वरीयता देंगे तो आपके कलीग्स इस बात का विरोध कर सकते हैं और आपके खिलाफ हो सकते हैं।
4. अगर आपके और आपके स्पाउस के बीच जूनियर-सीनियर की हायरार्की है तो आपकी छवि पर इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे मामलों में अकसर लोग कहते हैं कि बॉस के साथ निजी संबंध बनाकर तरक्की के रास्ते ढूंढे जा रहे हैं।
5. देखा गया है कि इन रिश्तों का खमियाजा पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों को ज्यादा उठाना पड़ता है। कई बार डिपार्टमेंट से ट्रांसफर कर दिया जाता है और ज्यादा बुरी स्थितियों में कंपनी से बाहर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है।
6. आप और आपके ऑफिस स्पाउस कलीग्स के गॉसिप का केंद्र बन सकते हैं, जिससे आपके लिए काम करने का माहौल खराब हो सकता है।
7. ऐसे रिश्तों की गॉसिप अकसर परफॉर्मेस पर हावी हो जाती है और लोग आपके काम को कम आंकने लगते हैं।
8. वर्कप्लेस अफेयर और ऑफिस स्पाउस में फर्क होता है लेकिन लोग ऐसे रिश्तों को एक ही निगाह से देखते हैं।