Tuesday, September 4, 2012

खो गई स्त्रियों की सुंदरता


पं महेश शर्मा

उसके बोलने के अंदाज में कर्कशता वरबस ही उसके व्यक्तित्व को अलग ही मोड़ दे रही है। पुरुष के कंधे से कंधा मिलाना कहिए या मजबूरी, पेट की खातिर कहिए या शौकिया, इस व्यस्त जीवन में स्त्री में संवेदनशीलता, सहनशीलता , सादगी अब अतीत की चादर ओढने लगी है।

वर्षों पूर्व की बातें है नीलम आज अचानक नलिनी शापिंग करते समय शहर में मिली थी, लेकिन आज वह बहुत बदली बदली सी थी। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास तो था पर इसकी कीमत उसे कहीं ज्यादा देनी पड़ी। वह अपने विनम्र स्वभाव, सौम्यता, अपने पहनावे, बात करने के अंदाज, तहजीब, हंसमुख व आभायुक्त आकर्षक चेहरे के कारण हमेशा हमारे बीच चर्चा का विषय रही थी। उसकी नजर में एक अपनत्व का भाव था जिसके कारण वह बरबस किसी अजनबी को भी आकर्षित कर लेती थी। अब उसके चेहरे को देखने के बाद दूर दूर तक ऐसा नहीं लगता कि नीलम वही है।

किसी पुराने दोस्तों से उसके इस रूप की चर्चा करूं तो वह सहसा विश्वास भी नहीं करेंगे। क्योकि नलिनी हम लोगों के बीच अच्छे विचारों और संस्कारों के लिए जानी जाती थी। लेकिन आज वही दुकानदार से इतने कर्कश लहजे में बात करती हुई दिखी। जो पहले सभी से नम्रत से पेश आती थी आज पुरुषों के लिबास पहने हुए थी, छोटे छोटे बाल किए जिसके कभी काले लंबे बाल थे। वह इतना कांतिहीन दिखाई देगी यह मैंेने सपने में भी नहीं सोचा था। आज उसके चेहरे पर लिपटी कठोरता व टपकती धूर्तता को देखकर मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या वास्तव में जीवन के संघर्ष और अपने अस्तित्व का ेस्थापित करने की लड़ाई ने स्त्री की सौम्यता व कमनीयता को नष्ट कर दिया है!

क्या सचमुच आज पुरुष के कंधे से कंघा मिलाने की होड़ में या समाज में अपने अस्तित्व को कायम करने की दौड़ में शामिल होने के लिए अपनी सौम्यता को समाप्त कर दिया है। नलिनी ने पूछने पर बताया कि वह आजकल इसी शहर में किसी बैंक में कार्यरत हैं। पतिदेव चाहते थे कि वह अपनी योग्यता को पहचाने तथा समाज में अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम करे।

यही कारण है कि वह आज इस मुकाम पर है। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उसको अपने विशेष गुण, जिसके लिए काॅलेज के दिनों में आकर्षण का केंद्र थी खोना पड़ा। काॅलेज के रोमानी व मस्ती से भरे दिन के समाप्त हो जाने के पश्चात उसने ज्यों ही जिंदगी की दौड ़धूप और व्यस्त भौतिक जीवन में सांसारिक जिम्मेदारी व समाज में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए कदम रखा त्यों ही उसे अपनी सौम्यता को लगभग त्यागना पड़ा। अब न उसकी पहले वाली कोमलता है न पहले की तरह पहनावा और नम्रता। अब तो बस अपनी सुविधानुसार पुरुष लिबास, सुविधा के लिए किए गए छोटै बाल, एवं लिपे पुते चेहरे के साथ कर्कष आवाज में उसकी पहले की छवि धुंधला गई है।


यह केवल नीलम की बात नहीं है। हर उस उत्री की बात है जो वर्तमान समाज में अपने अस्तित्व को ढूढने के लिए घर के दरवाजे के बाहर कदम रखती है, जो पुरुष से कंधे से कंधे मिलाने के लिए निकलती है। यह तो तय है कि धीरे धीरे स्वयं ही दुनिया की दौड़धूप में इस व्यस्तता भरे भौतिक जीवन को आपाधापी में अपने को झोंकने के लिए वह स्वत ही मजबूर हो गई है।

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