Wednesday, May 9, 2012

सबकुछ बताने में भलाई

पं. महेश शर्मा

पुरुष प्रधान समाज होने की वजह से आज भी अधिकांश पुरष महिलाओं की जिम्मेदारियों को किचन तक सीमित मानते हैं। लेकिन समय बदल गया है, इसलिए हर व्यक्ति का चाहिए कि आज के दौर में लाइफ पार्टनर हर मामले में साथ साथ रखें।

बहुत से पुरूष जरूरी कागजात जैसे कि बीमा पॉलिसी, जमीन-जायदाद, म्युचुअल फंड आदि के बारे में अपनी जीवन संगिनी को बताने में लापरवाही बरतते हैं। इसके पीछे पुरूष होने का भाव भी कहीं छिपा रहता है तथा यह सोच भी काम करती है कि जब मैं जिंदा हूं तो सब मेरी ही जिम्मेदारी है।

बेशक आप का विश्वास है कि आप दीर्घायु होंगे, पर जीवन के हर पहलू पर सोचकर जिंदगी जी जाती है तो भविष्य में आने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है। एक उदाहरण से बात शुरू करते हैं। अनूप की 41 वर्ष की अल्प आयु में ज्ज्दयाघात से अचानक मृत्यु हो गई। परिवार में पत्नी के अलावा दो छोटे-छोटे बच्चे व मां-बाप थे। उसने व्यवसाय खूब फैला रखा था, लेकिन अपने लेन-देन, जमीन-जायदाद, बैंक खाते, बैंक लॉकर, बीमा पॉलिसियों के बारे में अपनी पत्नी को कुछ भी नहीं बताता था और न ही कहीं लिखकर रखता था। शायद पत्नी को बताना आवश्यक नहीं समझा या उसकी काबलियत पर भरोसा नहीं था या फिर टैक्स वालों का डर था। लेने वालों ने घर के सामने लाइन लगा दी लेकिन देने वाले गायब हो गए। परिवार के सामने अंधेरा छा गया, बच्चे बिलखने लगे, पत्नी बेबस हो गई, रिश्तेदार आंख चुराने लगे।

एक समय था जब हमारे बुजुर्ग बड़े ही विश्वास के साथ छाती ठोककर कहते थे कि हम 100 वर्ष तक जिएंगे।
पहले संयुक्त परिवार होते थे, व्यापार में भी इतना फैलाव नहीं था। खान-पान अच्छा था, मेहनत करते थे, तनाव मुक्त हंसी-खुशी जीवन व्यापन करते थे। परिवार में अचानक हादसा होने पर भी घर के दूसरे सदस्य संभाल लेते थे। इतनी कठिनाई नहीं होती थी। आज हालात अलग हैं। एकल परिवार है। जीवन के हर पड़ाव में तनाव है। क्षमता से ज्यादा व्यापार का फैलाव कर रखा है। खान-पान का ठिकाना नहीं है। मेहनत बिलकुल नदारद है। कब यमराजजी से बुलावा आ जाए, कोई भरोसा नहीं।

इसलिए यह जरू री हो जाता है कि आप अपनी जीवन संगिनी को अपने कारोबार के बारे में पूरी जानकारी दें। किससे कितना लेना या देना है, जमीन जायदाद के कागजात कहां रखे हैं, बैंक खाते कहां-कहां खोल रखे हैं, म्युचुअल फंड व शेयर के प्रमाण पत्र कितने हैं और कहां रखे हैं, डिमेट या नामांकन करा रखे हैं या नहीं, गहने कितने व कहां रखे हैं, बैंक लॉकर का नंबर क्या है, कौन से बैंक में है, चाबी कहां रखी है तथा लॉकर में क्या-क्या रखा हैक् बीमा पॉलिसियां कितनी हैं, कहां रखी हैक् इन सबकी जानकारी का आपकी पत्नी को ज्ञान होना अति आवश्यक है। पत्नी को बताने में हीन भावना महसूस नहीं करनी चाहिए।

पत्नी का भी फर्ज बन जाता है कि वह अपनी रसोईघर के अलावा भी दूसरी पूरी जानकारी रखें, ताकि जरू रत पड़ने पर किसी की मोहताज न हो सके। अक्सर यह भी देखने में आता है कि पति सब कुछ बताना चाहता है मगर पत्नी भावुकता में समझने व जानने का प्रयास नहीं करती।

अगर आप अचानक हादसे से अपने परिवार को दु:खी होने से बचाना चाहते हैं तो कुछ विशेष बातों पर ध्यान दें और पहले ही सुरक्षा इंतजाम कर ले तो अच्छा होगा। बैंक अकाउंट, बैंक लॉकर, म्युचल फण्ड व शेयर आदि में पति-पत्नी का संयुक्त खाता होना अधिक अच्छा है। बीमा, बैंक, लॉकर आदि के सभी कागजात में नामांकन भी अवश्य करा लें। जब भी मौका मिले तो अपनी जीवन संगिनी को बैंक, ऑफिस या दुकान, बीमा दफ्तर साथ लेकर जाएं ताकि उसके लिए कोई अपरिचय वाली बात न रहे, उसे डर नहीं रहेगा। हादसे के बाद अपने को असहाय महसूस नहीं करेगी। किसी पर निर्भर नहीं रहेगी और अपने परिवार की गाड़ी को अच्छी तरह से चला सकेगी। औरत को कमजोर या नासमझ समझना अपनी सबसे बड़ी भूल है। जरू रत पड़ने पर आपकी पत्नी इतने अच्छे सुझाव देगी, हौसला बुंदी करेगी कि आप दांतों तले अंगुली चबा लेंगे।

प्रत्येक महत्वपूर्ण दस्तावेज की अलग-अलग फाइलें बनाकर अपनी पत्नी को अवगत करा दें। उन्हें अपडेट भी करते रहें। काम भी सुव्यवस्थित होगा। आप अपनी वसीयत भी एक अच्छी वकील या ऑडिटर से बनवा लें। इसमें कभी टालमटोल न करें। कोर्ट-कचहरी के चक्कर से अपने परिवार को बचाना है तो स्पष्ट प्रावधान दर्शाती वसीयत बनवा लें। विशेष बात का ध्यान रखें कि अपने जीते जी सब कुछ बेटों में बांटकर खाली हाथ न हो जाएं क्योंकि जरू रत पड़ने पर वृद्धावस्था में हाथ फैलाने को मजबूर होना बहुत ही कष्टदायक हो जाता है। यह अच्छा होगा यदि वसीयत में जीवन संगिनी के लिए समुचित प्रावधान हो।
जीवन में ये बातें इतनी ही जरू री हैं जितना कि पेट भरने के लिए खाना। इस यथ

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