Tuesday, May 8, 2012

परवरिश बच्चों का खेल नहीं है

पं. महेश शर्मा
बहुत तेजी से बदी रही है आज के बच्चों की दुनिया। ऐसे में उनके साथ हमारा बदलना भी वक्त की जरूरत बन चुका है। अ बवह दौर नहीं जब बडे. सिर्फ उपदेषक की भूमिका में होते थे। आज के अभिभावक वक्त के साथ कदम मिलाकर चल रहे हैं। उन्हें बहुत कुछ सीखने और समझने की जरूरत महसूस हो रही है। वाकई आज के माता पिता के लिए परवरिष बच्चों का खेल नहीं रह गया है।

आज की अति व्यस्त जीवनषैली का प्रभाव बच्चों के व्यवहार में भी देखने को मिलता है। वे सब कुछ बहुत जल्दी सीखना चाहाते हैं और हर काम के लिए षार्टकट रास्ते अपनाते हैं।

अगर आप उनकी बोलचाल, एसएमएस और चैटिंग की भाशा पर गौर करें तो यह समझना आसान हो जाएगा कि आज के बच्चे किस तरह कम से कम समय में और बिना अतिरिक्त मेहनत के अपना काम चलाना चाहते हैं। एक हद तक इसमें कोई बुराई नहीं है, पर उनकी यह जल्दबाजी और अधीरता उनके पूरे व्यक्तित्व में दिखाई देती है।

पहले बच्चों को यह सिखाया जाता था कि एक वक्त में एक ही काम करना चाहिए, पर आज मल्टीटास्किंग कल्चर को बढ.ावा दिया जा रहा है, जिसमें बच्चे एक साथ कई काम कर रहे होते हैं। यह उनके तेज दिमाग की निषानी जरूर है, पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि अब उनकी एकाग्रता में कमी आ रही है। वे सब कुछ थोड.ा थोड.ा जानते हैं पर किसी भी विशय की उन्हें पूरी और गहरी जानकानी नहीं है।

आज दौर में आप को भी बच्चों को कान में ईयरफोन लगाकर पढ.ते हुए या होमवर्क करते दिखते होंगे तो बहुत ताज्जुब होता है। मेरा तो मानना है कि उनमें जरा भी धैर्य नहीं है और वे हर काम जल्दी में निबटाना चाहते हैं। आज के बच्चे अच्छे स्रोता नहीं है। अगर उन्हें कोई बात बताई जाती है तो वे अपनी बाॅडी लैंग्वेज से यह जाहिर करते है कि उन्हें पहले से ही सब कुछ मालूम है और वे बड.ों की कोई भी बात सुनने में जरा सी भी दिलचस्पी नहीं है। इससे उनकी चेतना का सही और संतुलित विकास नहीं हो पा रहा है। उनके पास सूचनाएं तो बहुत हैं पर उनमें धैर्य विकसित नहीं हो पा रहा है, जिससे वे अच्छे बुरे की पहचान करते हुए सही निर्णय ले सकें।

दूसरी तरफ बच्चों के लिए पीयर प्रेषर यानी दोस्तों का दबाव सबसे बड.ा हौवा है। अगर वह अपने दोस्त की बर्थ डे पार्टी में ढंग से तैयार होकर नहीं गए तो उन्हें डर रहता है कि कहीं सभ्भी लोग मेरा मजाक न उडएं।

इसलिए जरूरत इस बात की है कि आज के बच्चों का बौदिृधक विकास पर ध्यान दिया जाए ताकि वे सही स्थित से अवगत हो सकें

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