Tuesday, April 24, 2012

सुखद दांपत्य

पं. महेश शर्मा 

वैवाहिक जीवन की जटिलता को समझना मुश्किल है। बहुत से ऐसे कारण पैदा हो जाते हैं जो मनमुटाव का कारण बनते हैं। लेकिन सुखी दांपत्य जीवन के उपाय जरूर किए जा सकते हैं।

हर युवती जीवन साथी का चयन करते समय इस बात का खास ध्यान रखती है कि वह आकर्षक और सुंदर तो हो ही, सुशिक्षित और सभ्य भी हो। इसी तरह हर युवक की भी ऐसी ही इच्छा होती है। घर को सुघड़ गृहणी की तरह संभालने का गुण और नौकरी पेशा युवती मिल जाए तो ऐसा संबंध सोने में सुहागा माना जाता है। पर ऐसा क्या हो जाता है कि अकसर कुछ सालों बाद यही गुण खीझ पैदा करने वाले लगने लगते ह। कुढ़न की भावना पनपने लगती है जो समय के साथ उग्र ज्वालामुखी का रूप ले लेती है। अंतत: संबंधों में दरारें आने लगती हैं। कोई युवती पति का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखती है कि वह आकर्षक और प्रभावशाली तो हो ही करिअर में सफल, प्रेम से परिपूर्ण भी हो। कुछ ही दिन बाद सोच बदल जाती है और मामूली बातों पर टकराव पनपने लगता है।

खासकर कामकाजी दंपति के बीच धन और सम्पत्ति पर नियंत्रण का प्रयास खतरनाक टकराव में बदल जाता है। तर्क-वितर्क और कुतर्क का परिणाम यह होता है कि सात जन्मों के वादा बंधन में बंधे पति-पत्नी के बीच दीवार खड़ी हो जाती है। आज हर तरफ यौन उन्मुक्तता का माहौल है। यह वर्जित विषय नहीं रह गया है। पर यह जीवन को अत्यंत त्रासद भी बना देता है। ऐसे मामलों में संघर्ष के दिनों में तो दोनों एक-दूसरे की लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बनते हैं पर अचानक एक का करिअर उड़ान भरने लगता है और दूसरा नीचे खड़ा मायूस रह जाता है। यही मायूसी ईष्र्या का कारण बनती है और कई बार अलगाव भी पैदा कर देती है।

वफादारी, प्रेम, खुशी, विश्वास और समर्पण की भावना के विपरीत अगर शक, अविश्वास, कड़वाहट, कुढ़न, जीवनसाथी की उपेक्षा, रूखा व्यवहार हावी हो जाए तो तो रिश्तों को ढोने की जगह अलग हो जाने का विकल्प चुनने में कोई एक ज्यादा देर नहीं लगाता। अधिसंख्य दांपत्य केवल इसलिए तबाह हो जाता है क्योंकि जीवनसाथी एक-दूसरे पर पागलपन की हद तक नियंत्रण चाहते है। अहं का युद्ध छिड़ जाए, ईष्र्या बनी रहे, एक-दूसरे की जड़ें काटने की कोशिश होती रहे तो दांपत्य जीवन निश्चित ही नर्क बन जाता है। कभी कभी मिश्रित वरीयताओं के कारण दांपत्य जीवन का आकर्षण भी धुंधला जाता है। एक-दूसरे के प्रति घटिया भाषा का इस्तेमाल, अपमान, अविश्वास और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृति खतरनाक परिस्थिति है और कई बार इससे उबरना बहुत मुश्किल होता है। गैर जरूरी हस्तक्षेप भी मनमुटाव बढ़ाता है और जीवन में जटिलताएं आनी शुरू हो जाती हैं।

इसमें है समझदारी

¯ छोटी-मोटी बातों को लेकर परस्पर अविश्वास की स्थिति पैदा न होने दें। खटास  देर तक और दूर तक बनी रहती है तो अलगाव तक मामला जा पहुंचता है। 
¯ एकदूसरे के महत्व को अच्छी तरह से समझें और जरूरतों को भी पूरा करें।
¯ घरेलू जिम्मेदारियों को तनाव का कारण न बनने दें।
¯ हमेशा समझबूझ से काम लें और समझौतावादी रुख अपनाएं।
¯  जरूरतें कैसे पूरी हों मिलकर सोचें और समस्या का समाधान भी मिलकर ही करने की आदत डालें।
¯ खर्च कभी भी आमदनी से अधिक न करें और बचत जरूर करें।

No comments:

Post a Comment