Saturday, October 15, 2011

क्यों न बनें एक-दूसरे के पूरक

पं. महेश शर्मा
वैवाहिक जीवन को आराम से सुख और षांति के साथ हंसकर जी लेना इतना आसान नहीं होता। इसके लिए बहुत प्रयास करने होते हैं।

वास्तव मे पति-पत्नी का जीवन रूपी गाड़ी के पहिये के समान होते हैं। यानी एक सिक्के के दो पहलू। इसी वजह से वैवाहिक जीवन को कभी न टूटने वाला संबंध बताया गया है।

आज भी समाज में अधिकांष लोग यही मानते हैं कि दाम्पत्य किसी भी सूरत नहीं टूटने वाला गठबंधन नहीं है। इसमें किसी भी तरह का दुराव, छिपाव, दिखावा, बनावटी व्यवहार और परस्पर अविष्वास, एक-दूसरे के प्रति घृणा को जन्म देता है। इससे दाम्पत्य जीवन नश्ट-भ्रश्ट हो जाता है।

आज भी पति-पत्नी अपनी मानसिक आवष्यकताओं के आधार पर पति-पत्नी से ही विभिन्न समय से सलाहकार की तरह मंत्री की सी योग्यता, भोजन करते समय मां की वात्सलता, आत्म सेवा के लिए आज्ञापालक होने की आषा करते हैं।  जब परस्पर इन मानसिक आवष्यकताओं की पूर्ति नहीं होती, तो एक-दूसरे में असंतोश की भावना उत्पन्न हो जाता है।

लेकिन ऐसी बात नहीं है कि असंतोश भरे जीवन के कटुता को दूर नहीं कियो जा सकता। इसके लिए आवष्यक है कि एक-दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए एक-दूसरे की योग्यता वृदिृध खासकर पुरुशों द्वारा स्त्रियों के ज्ञानवर्दृधन में योग देकर परस्पर क्षमाषीलता, उदारता, सहिश्णुता, अभिन्नता, एक-दूसरे के प्रति मानसिक तृप्ति करते हुए दाम्पत्य जीवन को सुखी व समृदृध बनाया जा सकता है।

पुरुशों को इसके लिए ज्यादा प्रयत्न करना आवष्यक है। वे अपने प्रयत्न व व्यवहार से गृहस्थ जीवन की कायापलट कर सकते हैं। धैर्य और विवेक के साथ एक-दूसरे को समझते हुए अपने स्वभाव, व्यवहार में परिवर्तन करके ही दाम्पत्य जीवन को सुख षांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।

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