Tuesday, October 18, 2011

नन्हे का ख्याल

पं. महेश शर्मा
जिंदगी की टेढ़ी.मेढ़ी राहों पर संभलकर चलना ही अपने आप में बहुत बड़ी कला है। जिसने इस कला को सीख लियाए उसके लिए दांपत्य जीवन की राहें बहुत आसान हो जाती हैं और जो नहीं सीख पाया उसकी राह के कांटे बढ़ते जाते हैं। 

मुश्किल तो तब आती हैए जब इन कठिनाइयों के बीच बच्चे पिसते हैंए जिनका न कोई कसूर होता है और न इतने जानकार होते हैं कि हालात से निपट सकें। फिर आखिर क्या है रास्ताघ्  साइकियाट्रिस्ट डाण् विकास सैनी कहते हैंए पति.पत्नी के बीच नोक झोंक या झगड़े होना आम बात है। कई बार यह नोकझोंक और झगड़ा सीमा को पार कर जाता है तो स्थिति बदतर हो जाती है। ऐसे में लोग यह नहीं समझ पाते कि उनके इस झगड़े का उनके बच्चों पर क्या असर पडे़गा। 

दरअसल बच्चों के लिए उसके माता.पिता ही उसके सबकुछ होते हैं। वही रोल मॉडल भी होते हैं। ऐसे में यदि माता.पिता के बीच झगड़ा होता हैए तो बच्चा असमंजस में पड़ जाता है कि कौन सही है और कौन गलत।  दूसरी बात यह है कि जो माता पिता उन्हें हमेशा शालीन बने रहनेए लड़ाई झगड़ा न करने की सलाह देते हैंए वे खुद बच्चों की तरह लड़ते हैं तो बच्चा दुविधा में ही फंसेगा। इससे बच्चे का विश्वास टूटता है। उसे लगता है कि ये हमें क्या समझाएंगेए इन्हें तो खुद ही लड़ने से फुरसत नहीं है। हमेशा झगड़े के माहौल में रहने से उनमें असुरक्शा की भावना आती है। जबकि विकास के लिए शांत और आपसी सामंजस्य का माहौल सबसे अनुकूल होता है। 
यदि उनमें आपस में मारपीट होती है तो इससे बच्चे के अंदर विरक्ति उत्पन्न हो जाती है। वे जीवन में निराशावादी होने लगते हैं। पढ़ाई.लिखाईए खेलकूद में उनका मन नहीं लगता। बच्चा भी लड़ाई झगड़ा देखकर वही सबकुछ सीखता है। लेकिन इस लड़ाई झगड़े का लड़की के ऊपर तो दूरगामी प्रभाव तक पड़ता है। वह इससे यही सबक लेती है कि उसे आत्म निर्भर बनना है और पति की धौंस बिलकुल नहीं सहनी है। या फिर वह शादी ही नहीं करेगी। ऐसे में आगे चलकर उसका वैवाहिक जीवन बहुत सफल नहीं बन पाताए क्योंकि वह सामंजस्य बैठाने की आदी नहीं होती। उसने झुकना सीखा नहींए सबको काबू में करने की मानसिकता पाल ली और अपनी जिंदगी में किसी का दखल उसे बर्दाश्त नहीं। अपनी कमाई अलग रखने की प्रवृत्तिए संयुक्त परिवार में न रहने की मानसिकता। यह सब कुछ लड़की को हिंसकए झगड़ालू बनाती हैं। इसलिए विचारों में आपसी मतभेदों को भुलाकर बच्चों का भी ख्याल रखें ।

.एक दूसरे की समस्या को समझें।
.बच्चों के सामने किसी की आलोचना न करें।
.व्यस्ततम क्शणों में कुछ समय निकालें और रचनात्मक कार्यों में लगाएं। 

ये जिंदगी न मिलेगी दुबारा

पं. महेश शर्मा
बहुत सारे ऐसे कारण जाने.अनजाने पैदा हो जाते हैं जो रिश्तों में कड़वाहट घोल देते हैं। अकसर यह तल्खी इतनी ज्यादा हो जाती है कि सात जन्मों का संबंध अचानक टूटने लगता हैं।

लैंगिक स्तर पर पुरुश और महिला दोनों के कामकाजी होने की वजह से आज पति.पत्नी के बीच भी एक.दूसरे के साथ के लिए बहुत कम समय मिलता है । लेकिन याद रखने की बात ये है कि दांपत्य जीवन केवल पैसे या दैहिक संबंधों के सहारे नहीं चलते। आज के दंपति तो आपस में लड़ना भी नहीं जानते। बातों.बातों में संबंध तोड़ लेते हैं। बोलना बंद कर देते हैं। वे भूलने लगते हैं कि दोनों का अलग.अलग वजूद दांपत्य प्रीत में प्रगाढ़ता लाता है।

भारतीय समाज और पंरपरा में पति.पत्नी के रिश्ते को दो शरीर पर एक प्राण माना जाता रहा है। रूचिए स्वभाव और आदत में भिन्नता होने के बावजूद दूसरे देशों के मुकाबले आज भी यहां दांपत्य अधिक सुखी है। उसके पीछे का आधार यही है। रूचिए दृश्टि और व्यवहार में मत भिन्नता के बावजूद प्रगाढ़ता बनी रहती है। पति.पत्नी एकरस होने की जगह आजीवन एक.दूसरे को अपनी रूचिए आदत और स्वभाव की ओर खींचते रहते हैं। एक.दूसरे पर अपना विचारण्व्यवहारण्संस्कार थोपने की कोशिश करते हैं। यह वर्चस्व की लड़ाई आजीवन चलती रहती है। पर न तो दांपत्य टूटता है और न ही परिवार बिखरता है।

मनोचिकित्सक डाण् विकास सैनी कहते हैं कि दांपत्य का लक्श्य बच्चों और परिवार का पोशण है। विवाह की गांठ एक.दूसरे को अपनी ओर खींचते रहने के कारण ही सख्त से सख्ततर और सख्ततम बनती चली जाती है। दोनों भिन्न हैं। दोनों के बीच खींचतान इसलिए है कि वैवाहिक जीवन उम्र भर एक.दूसरे को समझते रहने की सहयात्रा है। वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए एक.दूसरे से बातें करनाए हंसनाए बोलनाए दिन भर के खुशी.गम बांटना बहुत जरूरी है। एक.दूसरे को समय देनाए भावनाओं को समझना सफल वैवाहिक जीवन के लिए जरूरी है। पर लोग कई सारी वजहों से अपनी निजी जिन्दगी को भुलाते जा रहे हैं। दैहिक बनाते समय भी वे मानसिक रूप से व्यस्त होते हैं। इसी कारण वे इन नाजुक क्शणों का भी आनंद नहीं ले पाते।

एक.दूसरे के साथ वक्त बिताना इसलिए जरूरी है कि वैवाहिक जीवन में कोमलता बनी रहती है। याद रखिए कि टीवी पर आने वाले कार्यक्रम तो रिपीट हो सकते हैंए लेकिन आपकी निजी जिंदगी एक बार हाथों से फिसल गई तो दोबारा हाथ नहीं आएगी। इसलिए दोनों एक.दूसरे से बात करने के लिए समय निकालें। समय की कमी वैवाहिक जीवन को खराब कर सकती है।

सबको उन्नतिए तरक्की और पैसा प्यारा है। ये चीजें पहले भी महत्व रखती थीं और आज भी लेकिन पहले लोग वैवाहिक जीवन को अधिक महत्व देते थे। रोजमर्रा की जरूरतेंए जिम्मेदारियों का बढ़ता बोझए बच्चों की शिक्शा और लालन.पालन की वजह से आर्थिक रूप से परेशान लोग निजी जिंदगी को भूल गए हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि सुखी वैवाहिक जीवन से ही जीवंतता मिलती हैए ऊर्जा मिलती है पर जिम्मेदारियों का बोझ और लगातार बढ़ती मंहगाई उनके लिए सबसे बड़े तनाव का कारण बनती है। यही तनाव दांपत्य में जहर घोलने लगता है पर यह भी सच है कि आप किसी के चहेते तभी बन सकते हैं।

भिन्नताओं को स्वीकारने में समझदारी है

दोनों की भिन्नताओं से ही पूरकता बनती है। दोनों पूरक हैं एक.दूसरे के। दोनों का मिलन प्रकृति की जरूरत है। सृश्टि को चलायमान रखने के लिए। इसलिए यह जरूरी है कि पति.पत्नी एक.दूसरे के लिए जीते हुए अपना जीवनए ध्येय परिवार की उन्नति बनाएं। वे अपना अलग.अलग अस्तित्व भी बनाए रखें। विश्वास रिश्ते की मजबूती का आधार होता है। जीवनसाथी से बातें छिपाना उसके विश्वास को तोड़ने जैसा ही होता है। आपका ऐसा आचरण अविश्वास को जन्म देता है। गलतफहमी होने पर अपने साथी की बातों को ध्यान से सुनें।

विश्वास जीतने के लिए जताएं कि आप हमेशा साथ हैं। सबसे जरूरी है कि आप आपस में मत भिन्नता व अलग रुचियों के बावजूद भी एक.दूसरे को सम्मान दें एवं अपने अपने अस्तित्व को बचाये रखते हुए सुखद जीवन जीने की कोशिश करें। 

न बाबा न

पं. महेश शर्मा
बड़े महानगरों की तरह मेरठ में भी यूथ सेक्स फैंटेसी को एंज्वॉय करने लगे हैं। इसका दुश्प्रभाव भी सामने उभरकर आया है। शहर के मनोचिकित्सक और साइकोलॉजिस्ट केवल मात्र अनुभव के लिए किए गए इस लव अफेयर्स को सही नहीं मानते। उनका मानना है कि जिस तरह के केस 18 से 25 आयु वर्ग के यूथ का आ रहा है वह चौकाने वाला है। 

शहर में 18 से लेकर 25 वर्श तक के युवाओं में यह फैंटेसी प्रचलन में आ गया है। ये फैंटेसी अब वैवाहिक जीवन को भी ििडस्टर्ब करता दिखाई देता है। ऐसा देखदेखी की वजह से हो रहा है। प्री मैरिज रिलेशन बनाने वाले युवाओं में ज्यादातर छात्र अच्छे घरों से ताल्लुक रखते हैं और वो वातावरण से ज्यादा प्रभावित होकर ये काम कर रहे हैं। फिर वही अपनी स्टोरी को दोस्तों के बीच बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं। ऐसा केवल अनुभव के लिए करते हैं। इससे सहकर्मी छात्र भी ऐसा करने को प्रेरित होते हैं। साइक्रियाट्रिस्ट डाण् विपुल त्यागी कहते हैंए ऐसा यूथ द्वारा अपने आवेग व तात्कालिक संतुश्टि के लिए किया जाता है। उनके मन में जो भ्रांतियां होती है उसे भी दूर करने का प्रयास भर होता है। ऐसे में कई बार अपोजिट पार्टनर के साथ परफार्मेंस सही नहीं होने पर उनके समक्श प्रश्नचिन्ह उठ खड़ा होता है कि कहीं कोई कमी तो नहीं। ये कमी वैवाहिक जीवन के लिए परेशानी तोनहीं बनेगा। 

यही कारण है कि इस काम में शामिल युवा हमेशा टेंशन में रहते हैं। उनका टेंशन होता है कहीें ऐसा तो नहीं कि शादी के बाद असफल रह जाऊं।  ये सब इसलिए होता है कि प्रि मैरिज रिलेशन में अपोजिट पार्टनर के प्रति न तो वासना होता है और न ही प्यार है। जबकि शारीरिक संबंध बनाने के लिए इन दोनों में से किसी एक का होना जरूरी है। यानी ऐसा करने वाले युवा के मन में चिंता का प्रश्न पहले से ही होता है। चिंता के रहते आप कुछ करेंगे तो ऐसा होगा ही। क्योंकि दोनों बातें उसमें शामिल नहीं है। हद तो तब क्रॉस हो जाता है कि जब इन बातों को अपने साथियों के बीच में शान से बताते हैं। रोमांसए फैंटेसीए विडियो फूटेज से तो कई बार ऐसे युवा भी शिकार होते हैं जो सही रास्ते पर होते हैं। अच्छे बच्चे भी इसमें इसलिए फंस जाते हैं कि उनका कंसनट्रेशन बिगड़ जाता है। 

इस संबंध में मनोवैज्ञानिक डाण् विकास सैनी कहते हैंए ऐसे यूथ को शादी से पहले ही  मैरिज की चिंता सताने लगती है। मेक्सिमम परफार्म कर पाएंगे या नहीं। यह डर बना रहता है कि कहीं इससे दांपत्य जीवन में तालमेल बन पाएगा या नहीं। युवाओं को चाहिए कि वो फैंटेसी में न जिएं। दोस्ती करने में कोई बुराई नहीं है। और अगर दोस्ती आगे बढ़ती है भी है तो पहले मानसिक रूप से खुद को तैयार कर लेना चाहिए। अपने साथियों के बातों पर ध्यान देना तो इस मामले में हानिकारक साबित होता है। क्योंकि दोस्त कितना सही बता रहा है और कितना गलत यह तय नहीं होता। ऐसे में अगर आपने उसकी बातों को सही मान लिया तो स्थिति और गंभीर हो जाती है। इसलिए इस तरह का कोई भी काम अनुभव या फिर फैंटेसी के लिए नहीं करें। चूंकि मेल का अपना ईगो होता है जो ऐसा होने पर दुश्प्रभाव डालता है। 

Saturday, October 15, 2011

क्यों न बनें एक-दूसरे के पूरक

पं. महेश शर्मा
वैवाहिक जीवन को आराम से सुख और षांति के साथ हंसकर जी लेना इतना आसान नहीं होता। इसके लिए बहुत प्रयास करने होते हैं।

वास्तव मे पति-पत्नी का जीवन रूपी गाड़ी के पहिये के समान होते हैं। यानी एक सिक्के के दो पहलू। इसी वजह से वैवाहिक जीवन को कभी न टूटने वाला संबंध बताया गया है।

आज भी समाज में अधिकांष लोग यही मानते हैं कि दाम्पत्य किसी भी सूरत नहीं टूटने वाला गठबंधन नहीं है। इसमें किसी भी तरह का दुराव, छिपाव, दिखावा, बनावटी व्यवहार और परस्पर अविष्वास, एक-दूसरे के प्रति घृणा को जन्म देता है। इससे दाम्पत्य जीवन नश्ट-भ्रश्ट हो जाता है।

आज भी पति-पत्नी अपनी मानसिक आवष्यकताओं के आधार पर पति-पत्नी से ही विभिन्न समय से सलाहकार की तरह मंत्री की सी योग्यता, भोजन करते समय मां की वात्सलता, आत्म सेवा के लिए आज्ञापालक होने की आषा करते हैं।  जब परस्पर इन मानसिक आवष्यकताओं की पूर्ति नहीं होती, तो एक-दूसरे में असंतोश की भावना उत्पन्न हो जाता है।

लेकिन ऐसी बात नहीं है कि असंतोश भरे जीवन के कटुता को दूर नहीं कियो जा सकता। इसके लिए आवष्यक है कि एक-दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए एक-दूसरे की योग्यता वृदिृध खासकर पुरुशों द्वारा स्त्रियों के ज्ञानवर्दृधन में योग देकर परस्पर क्षमाषीलता, उदारता, सहिश्णुता, अभिन्नता, एक-दूसरे के प्रति मानसिक तृप्ति करते हुए दाम्पत्य जीवन को सुखी व समृदृध बनाया जा सकता है।

पुरुशों को इसके लिए ज्यादा प्रयत्न करना आवष्यक है। वे अपने प्रयत्न व व्यवहार से गृहस्थ जीवन की कायापलट कर सकते हैं। धैर्य और विवेक के साथ एक-दूसरे को समझते हुए अपने स्वभाव, व्यवहार में परिवर्तन करके ही दाम्पत्य जीवन को सुख षांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।

जानें तो सही पसंद और नापसंद (Like and Dislike in relationship)

पं. महेश शर्मा
दरअसल काबिल लड़कियों की काबिलियत ही सुयोग्य वर मिलने में सबसे बड़ी बाधा है। ये बात कुछ अजीब भले ही लगती हो, लेकिन यह आज का सच है।

बेटी की शादी करना माता-पिता का दायित्व है। बेटी के विवाह योग्य होते ही माता-पिता बेटी के लिए योग्य वर तलाशने लगते हैं। अनेक बार जल्दबाजी, सगे संबंधी का दबाव, अपूर्ण छानबीन के कारण बेटी को आपकी अदूरदर्शिता का खामियाजा हमेशा के लिए भुगतना पड़ता है। इसलिए रिश्ता करने से पूर्व कुछ बातों का ख्याल जरूर रखना चाहिए।

समान वर ढूंढे

सर्वप्रथम अपनी लाडली से उसकी पसंद नापसंद की जानकारी लें। उसी के अनुरूप वर तलाशने का प्रयास करें। बेटी का रिश्ता अपने स्तर के परिवार में ही करें। दोनों परिवारों के स्तर में उन्नीस-बीस का अंतर तो चल सकता है, अधिक नहीं। बहुत उंचे या बहुत नीचे स्तर के साथ रिश्ता जोड़ने से दोनों परिवार दुःखी रहते हैं।

योग्यता

बेटी का रिश्ता तय करते समय शैक्षिक योग्यता का भी ध्यान रखें। लड़का आपकी बेटी से अधिक नही ंतो बराबर पढ़ा लिखा अवश्य होना चाहिए। पति पत्नी का बौद्धिक, स्तर की समानता वैचारिक मतभेद नहीं उभरने देंगी।

अपनी बेटी के लिए उसके रंग-रूप, कद व स्वास्थ्य के अनुरूप ही वर तलाशें। लड़के के पद और हैसियत को देखकर उसके रूप, रंग, कद, स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना अनुचित है। प्रेम बढ़ाने में बाहरी आकर्षण का महत्वपूर्ण योगदान होता है। बेमेल रिश्ते से आपकी बेटी कुंठित रहेगी।

जरूरी है छानबीन

रिश्ता करने से पूर्व लड़के व उसके परिवार की अपने स्तर पर छानबीन अवश्य कर लेनी चाहिए। कई बार शादी कराने वाले महत्वपूर्ण बातों की जानकारी नहीं देते हैं या उसे भी उन बातों का ज्ञान नहीं होता। अधिक विश्वास के कारण कहीं आपकी बेटी के साथ विश्वासघात न हो जाए।

संबंधों के बीच खड़ा यक्ष प्रश्न

पं. महेश शर्मा
आपसी संबंधों के वर्तमान दौर में हर मोड़ पर बिखराव है। वैवाहिक बंधन में बंधे दंपत्तियों के लिए तो यह किसी चुनौती से कम  नहीं है। सबसे विकट स्थिति ये है कि इन परिस्थितियों से कैसे बाहर निकला जाए। जिंदगी को सुखमय कैसे बनाया। आज यह एक यक्ष प्रश्न है ?

वैवाहिक जीवन को भारतीय समाज में जन्म जन्मांतर का संबंध माना जाता है, लेकिन पश्चिमी सभ्यता, भौतिकवाद व अन्य कारणों से ये नाजुक डोर चटकने लगा है। सोच में आये बदलाव व नये मानवीय मूल्यो को इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाने लगा है। कारण चाहें कुछ भी हों परयुवाओं को ये सोचने की जरूरत है कि उनके आपसी संबंध बिगड़ते क्यों हैं ? इस पर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो इसे टूटने से पहले ही बचाया जा सकता है।

अगर ये भी मान लें कि आज के समय महिलाओं के लिए भी करिअर उतना ही महत्वपूर्ण जितना कि पुरुषों के लिए तो आपस में सामंजस्य बिठाने की जिम्मेदारी तो दोनों की है। इसलिए करिअर, सोच व अविश्वास को पति पत्नी के संबंधों में कितना हावी होने दें ये हम निर्धारित कर सकते हैं। इन्हीं बिंदुओं पर आपसी तालमेल नहीं होने का परिणाम है कि बातें तलाक तक पहुंचने लगी हैं। इस बात को सभी जानते हैं पर उससे बच नहीं पाते। कहने का मतलब है आज का शिक्षित युवक व्यावहारिक दुनिया के मामले में शून्य हैं। यही कारण है कि दांपत्य जीवन में तालमेल बैठा लेने जैसी छोटी छोटी समस्या उनके लिए यक्ष से कम नहीं होता। 

लेकिन ऐसा कर क्या जिंदगी को आसानी से जीया जा सकता है ? अगर नहीं तो क्यों नहीं, जो निर्णय लोग संबंधों को तोड़ने के लिए लेते हैं वही निर्णय संबंधों को सम्मान के साथ जीने के लिए क्यों नहीं लेते। कहने का मतलब यह है कि संबंधों के खराब दौर में भी आप अपनी पत्नी से ये कह सकते हैं कि देखो अगर तुम अपने आपको नहीं संभालोगी तो मेरा जीना मुश्किल हो जाएगा। मैं इस तरह नहीं जी सकता।

हो सकता है कि आपकी मनोदशा को भांपते हुए आपकी पत्नी धीरे-धीरे ही सही उसी राह पर चल पड़े। ऐसा करने से यह संदेश जाता है कि फैसला खुद ही कर लो सही क्या है ? दूसरी तरफ इस बात का इतना असर होता है कि हर इंसान सोचने पर मजबूर होता है और इसके परिणाम सार्थक निकलते हैं। यानी आप चाहें तो एक-दूसरे पर सही फैसला लेने की जिम्मेदारी सौंपकर भी संबंधों को मधुर मधुर सकते हंै।
इससे भी बात नहीं बने तो पहले विनम्रता से डेड लाइन या समय रेखा का अहसास अवश्य दिलाएं। खुद में ये प्रयास करें कि अगर कोई कमी है तो उसे कैसे सुधारा जाए। 

इसका सीधा और सरल जवाब है कि वैवाहिक जीवन से संबंधित समस्या पति-पत्नी से संबंधित होता है। इसके समाधान के लिए भी आप दोनों को प्रयास करने की जरूरत है। इस प्रयास में बराबरी की हिस्सेदारी होनी चाहिए। एक जीता एक हारा वाला रुख नहीं।

दोनों आपस में मिल बैठकर समय का हल खोजें। बहस करने से कोई लाभ नहीं मिलता। आपका उदृदेश्य होना चाहिए समस्या का निदान न कि बदला लेना या एक-दूसरे को नीचा दिखाना।