Saturday, September 10, 2011

बेटी से कम नहीं होती बहू (Daughter-in-law is not less than Daughter)

पं. महेश शर्मा
नई बहू के आने की खुशी ही अलग होती है। सभी लोग इस नये संबंधों को लेकर काफी उत्साह में होते हैं। हर परिवार में जब भी ऐसे अवसर आते हैं तो लोग नई बहू का गर्मजोशी से स्वागत करते हैं। ऐसा करें भी क्यों नहीं आजकल बहू बेटी से कम जो नहीं होती।

बाॅक्स: इसे अलग से मैटर के बीच में हाइलाइट करें
घर में नई बहू के आने पर परिवार के सभी सदस्यों को अच्छा व्यवहार करना चाहिए। ये हम सभी जानते हैं। लेकिन ऐसा व्यवहार में संभव नहीं हो पाता। यह सही स्थिति नहीं है। बेहतर तो यही है कि आप बहू को बेटी का दर्जा दें।

पुरुष प्रधान समाज में परंपरा यही है कि बेटी शादी के बाद अपने पति के घर जाती है। वह अपने परिवेश से बाहर निकल पति के परिवेश में रहना शुरू करती है। जबकि दोनों परिवारों के वातावरण में बहुत फर्क होता है। दूसरी बात यह कि नई दुल्हन नये वातावरण से पूरी तरह अनभिज्ञ होती हैं। इसलिए बहू को परिवार में आने के बाद नये माहौल को समझने में वक्त लगता है। यदि आप उसे अपने बच्चे के समान समझेंगे और इसके लिए उचित समय देंगे तो कोई समस्या नहीं होगी।

फिर समय के हिसाब से अगर हम खुद को बदल लें तो इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता। ये भी सही है कि स्त्री को प्रेम और करुणा का सागर माना गया है पर इसके साथ ही उसकी भी कुछ इच्छाएं होती हैं। विभिन्न विषयों को लेकर उसका अपना एक नजरिया होता है जो वह अपने परिवेश से लेकर आती है। दोनों में अंतर ही वैचारिक मतभेद का कारण बनता है। इसलिए अगर हम बहू को बेटी का दर्जा देंगे तो वह खुद ब खुद परिवार को अपना परिवार का हिस्सा बन जाएगी पति के परिवार को अपना परिवार मानकर उसी अनुरूप काम करेगी।
हमारे समाज का ढांचा ऐसा है, जहां बहू से यह अपेक्षा की जाती है कि वह परिवार के सभी सदस्यों को प्रेम की डोरी से बांधकर रखने की जिम्मेदारी बखूबी निभाए पर ऐसा तभी संभव है जब ससुराल में उसे उचित सम्मान और प्यार मिले। ससुराल में यदि बहू को बेटी मानकर प्यार दिया जाए, तो उसे भी ससुराल को अपना घर और वहां के प्रत्येक सदस्य की खुशी को अपनी मानने में देर नहीं लगती।

बदलें अपना स्वभाव

सास नहीं ससुर को भी समय के हिसाब से अपना स्वभाव बदलना चाहिए और बहू से जरूरत से ज्यादा उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि आज के दौर में खुद को तो बदला जा सकता है दूसरे को नहीं। नई बहू को अपने घर की परंपरा के बारे में जरूर बताना चाहिए पर उनकी शिकायत कभी नहीं करनी चाहिए। यदि बेटे बहू परिवार के साथ रहना नहीं चाहते हैं, तो जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। क्योंकि उनका अपना जीवन है। वे जो चाहे कर सकते हैं। साथ रहे और लड़ाई झगड़ा करते रहें, तो ऐसे साथ रहने से क्या फायदा। इससे पूरा परिवार दुखी रहेगा। दोनों तरफ से समझदारी होनी चाहिए। तभी सास बहू का रिश्ता कायम रह सकता है।

अपने जैसा समझें

खासतौर से जब बहू घर में आती है तो उसे अपने बच्चों के जैसा समझना चाहिए। घर में सभी चीजों पर जिस तरह से परिवार के अन्य सदस्यों का अधिकार होता है, उसी तरह से उसका भी उन पर समान अधिकार है। वह अपने माता पिता और घर परिवार को छोड़कर आती है। उसे नये लोगों के साथ रहना पड़ता है। बहू को यह कभी भी महसूस नहीं होना चाहिए कि वह अपने माता पिता को छोड़कर आई है। सासू मां को बहू की दोस्त बनकर रहना चाहिए।

खास ख्याल रखें

जिस तरह नये पौधे को दूसरे जमीन से निकालकर जब लगाया जाता है, तो उसका खास ख्याल रखना पड़ता है। ठीक उसी तरह नई बहू का भी ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले आप बहू को अपना बनाएं। सब चीज अपने आप ठीक हो जाएगी। यह मानकर चलें कि बहू भी आपकी तरह ही हाड़मांस की बनी हुई है, कोई संपत्ति नहीं है।

ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि आज की पढ़ी लिखी लड़कियां पहले की तरह सिर्फ घर का काम नहीं करती है, बल्कि समय के साथ कदम से कदम मिलाकर भी चलती है। उससे यह उम्मीद करना कि वह हमारी हर बात माने संभव नहीं। सभी प्यार से मिल जुलकर रहना चाहिए। तभी काम चलेगाा।

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