Wednesday, March 2, 2011

"प्रकृति और ज्योतिष ?विचार शास्त्रों के!" Nature and astrology? idea of the Scriptures!


जब हम कोई भी कार्ज करते हैं-तब उस कार्ज को पूर्ण करने के लिए हमें
अत्यधिक मेहनत करनी पड़ती है,किन्तु जब उसका प्रतिफल हमें प्राप्त हो जाता
है या उस कार्ज को हम पूर्ण कर लेते हैं तब हमें सफलता के आगे कठिनाई कुछ
भी नहीं दिखती है || हमारे भी ज्योतिष्कार ,महर्षियों ने ,आचार्यों ने
कितनी मेहनत की ,तप एवं साधना की-यह हमें भान भी नहीं है-जब हम बात
ज्योतिष की करते हैं -तो निचोड़ तो लेना चाहते हैं -मूल भुत तत्व तक जाना
नहीं चाहते हैं जिस कारण से -हमें सफलता उतनी नहीं मिल पाती है ||
इस आधार पर जिस प्रकृति में हम रहते हैं -आज हम उसको जानने की कोशिश करते हैं-
"जड़ -जंगम ही प्रकृति है | इसके नव द्रव्य हैं -[]-पृथ्वी []-जल
[]-तेज []- वायु []-आकाश []-काल []-दिक् []-आत्मा []-और -मन ||
इन नव द्रव्यों में भी प्रथम चार -परमाणु रूप हैं -ये निराकार होते हुए
भी -इन्द्रियगम्य हैं | ये अपने गुणों से पहचाने जाते हैं और जब इनके ऊपर
दिनकर [सूर्य ] का प्रभाव पड़ता है ,तो शांत -अशांत,सुन्दर से असुंदर
,मधुर से विषम और जीवन से मरण में परिणत हो जाता है ||
भाव -वर्तमान भूत एवं भविष्य की जानने की तमन्ना तो सभी को होती है,
किन्तु अपने इर्द गिर्द जो सच है ,उसको पहचानने की भी हमें कोशिश करनी
चाहिए ||


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ज्योतिष को समझने के लिए "अयन" को भी समझना पड़ता है !"
मित्र प्रवर ,राम राम ,नमस्कार ||


"सूर्य "का आना और जाना -को ही -"अयन कहते हैं |ज्योतिष शास्त्रों के
अनुसार -"अयन "दो होते हैं -जिनका समय -१३ या १४ जनवरी से शुरू होकर ,जो
संक्रमण १५ जुलाई को समाप्त होता है उसे उत्तरायण कहते हैं | इसी प्रकार
१६ जुलाई से १२ जनवरी तक की कालावधि को दक्षिणायन समझी जाती है ||[]
उत्तरायण में शुभ कार्ज किये जाते हैं,एवं दक्षिणायन में कोई भी शुभ
कार्ज नहीं किये जाते हैं |


[]-उत्तरायण सूर्य में जन्म लेने वाला व्यक्ति प्रायः सदैव प्रसन्नचित
रहता है,स्त्री एवं पुत्रादि से सुख पाने वाला ,दीर्घायु ,श्रेष्ठ ,आचार
विचार वाला ,उदार व् धैर्यशील होता है ||


[]-दक्षिणायन-में जन्म लेने वाला जातक -कृपण ,पंडित ,लोक प्रसिद्ध ,पशु
-पलक ,निष्ठुर ,दुराग्रही एवं अपनी ही बात को मानने वाला है |
कुछ ज्योतिष के ग्रन्थ [संहिता ]में उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा है
,जबकि "सूर्य "विषुव वृत्त से उत्तर में रहता है | मेरु [पर्वत ]पर रहने
वाले देवताओं वो ६ मास तक सतत दिखाई देता है,अतः इस कथन से भी सूर्य को
युगल गतियों का होना भी सिद्ध होता है |\
"अयन "शब्द का पर्योग किस काल के लिए किया गया है ,इसका उल्लेख "वेदों
में अन्यत्र नहीं मिलता है ||
"सूर्य "का आकाशीय नक्षत्रों और ग्रहों पर अमिट प्रभाव पड़ता है| सही
माने तो -सृष्टि का संचालन ही सूर्य से होता है ||


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प्रिय मित्रप्रवर ,राम राम ,नमस्कार ||
जीवन में उतार और चढाव तो आते ही रहते हैं,फिर भी जीव को जीना पड़ता है |
ज्योतिष की नजर में वर्तमान ,भूत एवं भविष्य की गणना करते समय आचार्य लोग
संकेत की भाषा का पर्योग करते रहते हैं -इसलिए कुंडली जब भी लिखी जाती है
तो हम संस्कृत भाषा में ही लिखते हैं ,समय बदला तकनिकी बदली एवं हमलोग भी
बदल गए इसलिए अब कुंडली हिंदी या अंग्रेजी में बनने लगी,तो निश्चित ही
सभी ज्योतिष के मर्मग्य भी हो गए | आज हम जब अपने घर की सुरक्षा के लिए
नौकर रखते हैं -तो उसकी भी भेष भूषा होती है किन्तु -हमलोग संस्कृत के
विद्वान या संस्कृत्ग्य होने के वाद भी हमारी कोई -नियमावली नहीं होती है
,हम अपनी ही मर्यादा का उलंघन करते हैं एवं गर्व महसूस भी करते हैं ||


---भारत की धनु राशि है एवं कालसर्प दोष होने के कारण अपने देश को जब भी
सफलता मिलती है तो अनायास ही मिलती है,एवं अनायास ही खो जाती है -चाहे
-प्रधानमंत्री हों ,अभिनेता हों ,तकनीकि हो,राष्टपति हों ,क्रिकेट हों
,उन्नति हो ||


-श्री महेंद्र सिह धोनी जी की भी कुंडली में -या नाम से -शनि की
साढ़ेसाती चल रही है -जो अनायास लाभ तो हानी भी देती है ,किन्तु सबसे
बड़ी बात यह है -भारत की राशि एवं इनकी राशि मित्रबत होने के कारण-सफलता
की राह दिखाती है ,किन्तु इस सफलता की राह में दिक्कत भी बहुत है यदि
विषम राशि के जातक का सहयोग मिलेगा तो सफलता जरुर मिलेगी ||
मेरे विचार से भारत की झोली में कई उपहार मिलने वाले हैं ,किन्तु ओ
रहस्य की बात है-जो हमें चिंतित नहीं होना चाहिए ,चिंतन के साथ परमात्मा
के ऊपर छोर देना चाहिए || जो मार्ग में अबरोधक कमी है उसके लिए पर्यास
करने चाहिए ||


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