Thursday, March 10, 2011

पति-पत्नी का रिश्ता अटूट

हिंदू धर्म में स्पष्ट है आप ईश्वर को साक्षी मानकर कहएि कि आप
गृहस्थाश्रम का शास्त्रानुसार पालन करेंगे। 


हमारे धर्म में विवाह को एक संस्कार माना गया है, जबकि इस्लाम में उसे एक समझौता। समझौता तलाक से भी खत्म हो जाता है और किसी एक साथी की मौत से भी। हिंदू विवाह में पति की मौत से भी पत्नी का संबंध अपने पति नहीं टूटता, क्योंकि हिंदू धर्म में तलाक की कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन आजकल हिंदू धर्मालंबियों ने अपनी सुविधा के हिसाब से सबकुछ को बदल दिया है। वे आज लव मैरिज करने लगें हैं। यहां तक कि लिव इन रिलेशनशिप को भी जायज ठहराते हैं। यह अपनी सुविधा के हिसाब से धर्म की व्याख्या है।

हिंदू धर्म को खतरा हमेशा अपनों से रहा है। यह धर्म उदार है और इसके अनुयायी इसी का लाभ उठाते हुए इसकी अपनी अपनी व्याख्या करते रहते हैं। आज के युवा नीति नियमों के साथ हमेशा खिलवाड़ करते हैं, और झंडा धर्म का इतना ऊंचा लेकर चल रहे हैं कि दूसरों को भी सही गलत का उपदेश दे रहे हैं। 

ये तो रही हिंदू विवाह को लेकर धर्म की बात अगर आप कानून की बात करें तो आम लोगों की सहूलियत, सुरक्षा और बेहतर जीवन में सहायता देने के लिए इसे बनाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है, लेकिन भारत में सैकड़ों कानून ऐसे बने हैं जो आम लोगों के जीवन का जंजाल बन चुके हैं। हिंदू विवाह कानून के भी कई प्रावधान ऐसे ही हैं।

दरअसल जब ये कानून बने थे तब उनकी प्रासंगिकता समाज और लोगों के रहन सहन और आचार विचार के हिसाब से रही होगी, लेकिन समय के साथ सबकुछ बदल चुका है, पर कानून वहीं के वहीं है। तमाम ऐसे कानूनों में एक कानून हैं हिंदू विवाह कानून। इस कानून के हिसाब चाहे पति पत्नी कई साल से एक-दूसरे का मुंह तक न देख रहे हों पर उन्हें तलाक नहीं मिल सकता। दोनों को शादी की हथकड़ी में बंधे रहना पड़ता है। केवल आपसी समझ के आधार पर ही तलाक मिल पाता है।

लेकिन अब यह सवाल  उठाया है सुपी्रम कोर्ट ने। अदालत का मानना है कि जब तक हिंदू मैरिज एक्ट में परिवर्तन नहीं किया जाता, हालात नहीं बदलेंगे। भारत मे कानून में परिवर्तन के इंतजार 55 हजार से भी ज्यादा जोड़ बैठे हैं, ताकि उन्हें तलाक मिल सके और वे नये सिरे से अपना जीवन शुरू कर सकें।
सुप्रीम कोर्ट में यह ज्वलंत मुद्दा कुछ दिनों पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुशीला कुमार शिंदे की बेटी स्मृति की शादी और तलाक के केस से जुड़ा है। शिंदे की बेटी स्मृति अपने पति से पांच साल से अलग रह रही हैं, लेकिन हिंदू विवाह कानून की धारा 13एक बी के प्रावधानों के कारण उन्हें तलाक नहीं मिल रहा। अब स्मृति ने इस धारा के प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

इस धारा के अनुसार आपसी सहमति से तलाक लेने से पहले पति पत्नी में छह महीने का अलगाव जरूरी है। अदालत ने कहा है कि स्मृति और उसके पति को मसले के सर्वमान्य हल की दिशा में कोशिश करनी चाहिए। स्मृति के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह वैवाहिक रिश्ता जुड़ नहीं सकता, क्योंकि पति पांच साल से तलाक को खारिज कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी जोड़े न जा सकने वाले ऐसे रिश्तों को खत्म माना है, लेकिन कोर्ट का कहना है कि उसके पास इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं है कि वह दंपत्ति से टूट चुके इस रिश्ते को ताउम्र निभाने के लिए कहे।

वहीं विधि आयोग ने सरकार से हिंदू मैरिज एक्ट में बदलाव कर इस खामी को दूर करने की सिफारिश की है। इसके बाद ही कानून मं़ी एम. वीरप्प मोइली ने संसद में विधेयक पेश करने की बात कही थी, जिसको लेकर हिंदू विवाह कानून में बदलाव की चर्चा जोरों पर है और सरकार इस बात को लेकर सक्रिय है।
और यह होता है गृहस्थी का सबसे मधु भाग

गृहस्थी परमात्मा का प्रसाद है। पर इसका सबसे मीठा, स्वादिष्ट और महत्वपूर्ण भाग है संतान। जो बच्चे परिवारों में ठीक से पल कर समाज में उतरेंगे वे धरती पर बोझ नहीं, समाज और राष्ट्र के लिए गौरव बनेंगे। किसी ने ठीक कहा है और हमारे ऋषिमुनि भी यही कहते थे कि बच्चों के साथ कभी-कभी बच्चा होना पड़ता है तब उसे बड़प्पन क्या होता है समझ में आता है।

अध्यात्म की दृष्टि से बच्चों के लालन-पालन में उन्हें दो चीजें सावधानी से देना चाहिए। और वह है खान-पान। वे क्या खा रहे हैं और क्या पी रहे हैं इससे उनका व्यक्तित्व बनता है। कबीर लिख गए हैं-
जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय। जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी होय।।

जैसा भोजन करोगे, वैसा ही मन का निर्माण होगा और जैसा जल पियोगे, वैसी वाणी होगी अर्थात् शुद्ध-सात्विक आहार तथा पवित्र जल से मन और वाणी पवित्र होते हैं, इसी प्रकार जो जैसी संगति करता है, उसका जीवन वैसा ही बन जाता है।

भोजन से मन बनता है। दरअसल मन अपने निर्माण के बाद जो भोजन करता है उसका नाम विचार है। वह विचार खाता है। जिन बच्चों का मन सात्विक भोजन से बनेगा, फिर वह मन भी सात्विक विचार खाएगा। ऐसे ही पानी से वाणी का संबंध है। जल शरीर में ऑक्सीजन लेकर जाता है। अपनेआप में यह प्राणायाम की क्रिया बन जाती है।

बच्चों को सिखाया जाए जल हमेशा बैठकर पिया जाए। जो बच्चे सही शब्द सुनते हैं और सही विचार गुनते हैं उनका व्यक्तित्व पूर्ण होता है।दूरदर्शिता, याददाश्त और चरित्र खानपान पर निर्भर है। इसलिए बच्चों के साथ यदि सचमुच उनका बचपन जोड़े रखना है तो उनके स्वाद पर नजर रखें और बच्चों को एक चीज पसंद है कि उनसे उन्हीं के लेवल पर आकर जीवन जिया जाए और बड़े इसी में चूक जाते हैं।

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