Saturday, February 19, 2011

संपूर्ण संस्कार है विवाह (Marriage Perfect Rites)

पं. महेश शर्मा

विवाह एक संस्कार है, शरीरों का आदान प्रदान मात्र नहीं। संस्कार उसे कहते हैं, जो मनुष्य का सुसंस्कृत मार्ग दर्शन करे। लोगों को व्यवस्थित कला और सुरूचिपूर्ण जीवन की प्रेरणा दे और लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक हो।

विवाह के इस सार्थक अर्थ के विपरीत कहीं दहेज को लेकर पति-पत्नी झगड़ते हैं, तो कहीं विचार वैगाम्य के कारण टकराव है। शरीर, रूप और स्वास्थ्य का आकर्षण कुछ दिन ही चलता है। इनका थोड़ा भी अभाव होने पर पति-पत्नी परस्पर खिचने लगते हैं। एक घर में रहते हुए भी मन से कोसों दूर। ऐसे दम्पत्ति जीवन लक्ष्य की प्राप्ति करना तो दूर पार्थिव जीवन ही ऐसे जीते हैं, जैेसे कोई हजार मन वजन का पत्थर उनकी छाती पर चढ़ा हो।

होना यह चाहिए कि दोनों शरीर और स्वास्थ्य के साथ-साथ भावनात्म्क एकता का भी परिपालन पूर्ण निष्ठा के साथ करें। इसके लिए न तो दहेज की आवश्यकता है, जो उनके मन को सूक्ष्म रूप से वह संस्कार भर सकें और उन्हें इस बात की सशक्त प्रेरणा दे सके कि विवाह का अध्यात्मिक उद्देश्य अधिक महत्वपूर्ण है। यदि यह बात मन में बैठ जाए तो असफल विवाहों की समस्या स्वयंमेव हल हो जाए।

इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पुरूष और महिला का मिलन जरूरी है। पुरूष अपने आप में अपूर्ण है, उसे जीवन व्यवहार में और आत्मिक आकांक्षाओं में सहयोग के लिए समान गुण, संस्कार और सिद्धांतों वाली धर्मपत्नी की आवश्यकता पड़ती है। उसी प्रकार स्त्ऱी को भी अध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सहायक साथी की आवश्यकता होती है। विवाह को उन दोनों आत्माओं के जीवन लक्ष्य की प्राप्ति में सहयोग का नाम है। विवाह को उन दोनों आत्माओं के जीवन लक्ष्य प्राप्ति में सहयोग का संकल्प कहना चाहिए। उस दृष्टि से ऊपर वर्णित जटिलताओं की कहीं भी कोई भी उपयोगिता दृष्टि गोचर नहीं होती।

देवताओं, अग्नि और भगवान की साक्षी में संपन्न होने वाला विवाह एक प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान है। दो आत्माओं के भावनापूर्ण अध्यात्मिक विलयन को विवाह कहते हैं। पर अब जो परंपराएं प्रचलित हैं, उनमें कहीं भी न तो ऐसी प्रेरणा मिलती हैं और न शिक्षा का ही प्रावधान रखा गया है। इसलिए परंपरागत विवाहों को आदर्श विवाहों के रूप में ढालने की नितांत आवश्यकता है।

कहने का मतलब है कि किसी विवाह को आदर्श विवाह तभी कह सकते हैं जब पति-पत्नी यह अनुभव करें कि ये वासना की पूर्ति, बच्चे पैदा करने अथवा सामान्य जीवन बिताने के लिए ही प्रणय सूत्र में नहीं आबद्ध हो रहे वरन वे परस्पर हित के लिए कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य, विवेक और अपने साथी को अधिक महत्व देने के लिए तैयार रहेंगे। विवाह अपने आपको समाज सेवा में ढालने की प्रारंभिक किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है, उसके अनुरूप ही मानसिक और भावनात्मक तैयारी भी होनी आवश्यक है।

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