Saturday, January 29, 2011

फायदेमंद है मैरिज रजिस्ट्रेशन (Importance of Marriage Registration)

महिलाएं अपने अधिकारों
की बात करती हैं तो
यह भी जरूरी है कि
वे अधिकारों के प्रति भी
जागरूक होकर कुछ ऐेसे
ठोस कदम भी उठाएं।

महिला सशक्तीकरण के युग में में जब महिलाएं अपने अधिकारों की बात करती हैं तो यह भी जरूरी है कि वे अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक होकर कुछ ऐसे ठोस कदम उठाएं, जिससे उनके अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित होसके। इसी के अग्रसरण में एक आवश्यक कदम है विवाह के रजिस्ट्रेशन/पंजीकरण की अनिवार्यता। विवाह के रजिस्ट्रेशन से महिलाएं अपना और अपनी संतानों के विभिन्न अधिकारों का संरक्षण कर सकती हैं। सन् 1979 में यूनाइटेड नेशसंस जनरल असेम्बली में यह तय हुआ था कि विवाह के रजिस्ट्रेशन को आवश्यक कर दिया जाना चाहिए। हमारा देश भी उस सभा एक हिस्सा था और असमेंबली के मत से सहमत था। 09 जुलाई 1993 को पुनः इस मत का पुष्टिकरण किया गया, लेकिन विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं हो पाया।

भारत जैसे देश में जहां अनेकों धर्म, भाषा व रीति रिवाजों के कारण विभिन्नता है और सभी धर्म अपनी परंपराओं के आधार पर विवाह का मान्यता देते हैं, ऐसे में विवाहों का रजिस्ट्रेशन और भी आवश्यक हो जाता है। जरूरी नहीं कि विवाह हमेशा ही एक समारोह के रूप में सम्पन्न हो। अनेकों ऐसे ग्रामीण इलाके हैं जहां अशिक्षित व गरीब जनता निवास करती है। वहां विवाह इतने साधारण तरीके से होता है कि विवाह के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए साक्षी मिलना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में यदि पति-पत्नी के मध्य में कोई मतभेद उत्पन्न होता है या पति अपने दायित्वों की पूर्ति नहीं करता और विवाह के अस्तित्व को ही नकार देता है तो उस स्थिति में पीड़ित पत्नी के पास या अदालत के पास कोई तंत्र नहीं होता कि उस विवाह को सिद्ध कर सके। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने सीमा व अश्विनी कुमार के मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि जहां विवाह के अस्तित्व के विषय में कोई साक्ष्य या अधिकारिक अभिलेख नहीं होता, वहां ऐसी परिस्थिति में ज्यादातर केसों में व्यक्ति (पति) विवाह के अस्तित्व को ही नकार देता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि भारत के प्रत्येक नागरिक चाहें वह किसी भी धर्म से संबंधित हो, अपने विवाह को अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन कराए। न्यायालय ने इसे ‘परमावश्यक सांख्यिकी’ बताते हुए यह भी कहा कि विवाह का रजिस्ट्रेशन भी इतना ही आवश्यक है, जितना कि जन्म मृत्यु का पंजीयन।

विवाह रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता समाज के हित में है, क्योंकि इस माध्यम से समाज की कुछ कुरीतियों को रोकना संभव है। जैसे कुछ अभिभावक अपनी बेटियों को विवाह की आड़ में बेच देते हैं। इस विवाह रजिस्ट्रेशन से बाल-विवाह को रोका जा सकता है। विवाह के लिए आयु की न्यूनतम सीमा को सुनिश्चित किया जा सकता है तथा बहु-विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को रोका जा सकता है। साथ ही साथ ऐसी दशा में जहां पति ने अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया हो या पति की मृत्यु हो गई हो, ऐसे में पत्नी को अपने पति के घर में रहने का अधिकार, भरण पोषण का अधिकार तथा उसकी संतान को संपत्ति में अधिकार दिलाने में भी विवाह रजिस्ट्रेशन मददगार साबित होता है। क्योंकि विवाह का रजिस्ट्रेशन विवाह के अस्तित्व को बल देता है। इसलिए प्रत्येक नागरिक का विवाह के पश्चात् विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य रूप से कराना व्यक्तिगत हित में और समाज हित में आवश्यक है।

विवाह रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता समाज के हित में है,  क्योंकि इस माध्यम में समाज की कुछ कुरीतियों को रोकना संभव है। जैसे कुछ अभिभावक अपनी बेटियों को विवाह की आड़ में बेच देते हैं। इस विवाह रजिस्ट्रेशन से बाल-विवाह को रोका जा सकता है।

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