Saturday, January 29, 2011

पति-पत्नी एक सिक्के के दो पहलू (Husband Wife 2 sides of a coin )

पति-पत्नी दोनों का जीवन एक सिक्के के दो पहलू के समान होते हैं। दाम्पत्य किसी भी सूरत नहीं टूटने वाला गठबंधन है। इसमें किसी भी तरह का दुराव, छिपाव, दिखावा, बनावटी व्यवहार और परस्पर अन्धविश्वास, एक-दूसरे के प्रति घृणा को जन्म देता है। इससे दाम्पत्य जीवन नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है। नव दंपत्ति को हर हाल इससे दूर रहना चाहिए।

पति-पत्नी अपनी मानसिक आवश्यकताओं के आधार पर पति-पत्नी से ही विभिन्न समय से सलाहकार की तरह मंत्री की सी योग्यता, भोजन करते समय मां की वात्सलता, आत्म सेवा के लिए आज्ञापालक, जीवन पथ में एक अभिन्न मित्र, गृहणी, रमणी आदि के कर्तव्यपूर्ति की आशा रखते हैं। जब परस्पर इन मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती, तो एक-दूसरे में असंतो की भावना उत्पन्न हो जाता है।

एक-दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए एक-दूसरे की योग्यता वृद्धि खासकर पुरूषों द्वारा स्त्रियों के ज्ञानवर्द्धन में योग देकर परस्पर क्षमाशीलता, उदारता, सहिष्णुता, अभिन्नता, एक-दूसरे के प्रति मानसिक तृप्ति करते हुए दाम्पत्य जीवन को सुखी व समृद्ध बनाया जा सकता है।

इसके लिए पुरूषों को अधिक प्रयत्न करना आवश्यक है। वे अपने प्रयत्न व व्यवहार से गृहस्थ जीवन की कायापलट कर सकते हैं। धैर्य और विवेक के साथ एक-दूसरे को समझते हुए अपने स्वभाव, व्यवहार में परिवर्तन करके ही दाम्पत्य जीवन को सुख शांतिपूर्ण बनाया जा सकता है।

पति-पत्नी की परस्पर आलोचना दाम्पत्य जीवन के मधुर संबंधों में खटास पैदा कर देती है। इससे एक-दूसरे की आत्मीयता, प्रेम, स्नेहमय आकर्षण समाप्त हो जाते हैं। कइ्र्र अपनी स्त्री की बात-बात पर आलोचना करते हैं। उनके भोजन बनाने, रहन-सहन, बोलचाल, आदि तक में नुक्ताचीनी करते हैं। इससे स्त्रियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसे में स्त्रियों को पति की उपस्थिति बोझ सी लगती है और वे उन्हें उपेक्षा तक करने लगती हैं।

स्त्रियां सदैव चाहती है कि उनका पति उनके काम, रहन-सहन, आदि की प्रशंसा करें। वस्तुतः पति के मुंह से निकला हुआ प्रशंसा का एक शब्द पत्नी को वह प्रसन्नता प्रदान करता है जो किसी बाह्य साधन, वस्तु से उपलब्ध नहीं हो सकती। दाम्पत्य जीवन में जो परस्पर प्रशंसा करते नहीं थकते, वे सुखी, संतुष्ट व प्रसन्न रहते हैं।

जिन स्त्रियों को पति की कटु अलोचना सुननी पड़ती है, वे सदैव यह चाहती हैं कि कब वहां से हटे और पति की अनुपस्थिति में वे अन्य माध्यमों से अपने दबे हुए भावों की तृप्ति करें। सखियों से तरह तरह के गप्पे लड़ताी है, तरह के श्रृंगार करके बाजार में निकलती हंै और यहां तक कि पर पुरूषों के प्रशंसापात्र बनकर अपने भावों को तृप्त करने का भी प्रयत्न करती हंै। जो प्रेम व प्रशंसा उन्हें पति से मिलना चाहिए वह अन्यत्र ढूंढने का प्रयत्न करती हैं। कई स्त्रियां मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाती हंै, अथवा क्रोधी, चिड़चिड़े स्वभाव की झगड़ालू बन जाती है। इस तरह स्त्रियों द्वारा पति की उपेक्षा, आलोचना करना भी उतना ही विषैला है।

वहीं पुरूषों को अपने काम से थक कर आने पर घर में प्रेम व उल्लास का उमड़ता हुआ समुद्र लहराता मिलना चाहिए, जिससे उनकी दिन भर की थकान, क्लांति परेशानी धुल जाए। उनके साथ यदि पत्नी कटु आलोचना, व्यंग्य-बान, बच्चे की धर पकड़, हाय हल्ले का सामना करना पड़े तो उस आदमी की क्या हालत होगी! भुक्तभोगी इसका अंदाजा लगा सकते हैं।

असल में पति पत्नी का एक समान संबंध होता है, जिसमें न कोई छोटा, न कोई बड़ा है। दाम्पत्य जीवन में विषय वृद्धि का एक कारण परस्पर और आदर भावनाओं की कमी भी है।

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