Monday, December 6, 2010

चलें संग संग

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पं. महेश शर्मा


वैसी भी शादी को लेकर आजके युवा काफी कंशस हो गए हैं। वह अब सुंदर और केयर करने वाली पत्नी ही नहीं चाहिए। ऐसी पत्नी भी चाहिए कि जिंदगी के हर मोड़ पर साझीदार बन सके। वह समझदार और आर्थिक मामलों में सहयोगी भी भूमिका में आने वाली हो। ठीक उसी तरह लड़कियों की पसंद में भी बदलाव आया है। लड़कियों को ऐसे लड़के पसंद हैं जो योग्य हो, सुंदर हो और जमाने के साथ चलने वाला है। वर्तमान जिंदगी जीने को लेकर उसमें खर्च करने की क्षमता भी हो

यानी शादी केवल रिश्तों को जोड़ने का खेल नहीं, बल्कि सही मायनों में कंधे से कंधे मिलाकर जिंदगी जीने का माध्यम हो गया है। हमसफर शब्द को सही मायने में आज के युवा सही अर्थ दे पा रहे हैं। खासतौर से करिअर के मुद्दे पर समझौता करना उन्हें स्वीकार नहीं है, फिर बात शादी में बंधने की हो या फिर किसी और की इससे कोई फर्क नहीं पडता।

महानगर से लेकर कस्बाई क्षे़त्रों की लड़कियां भी यह मानने लगी हैं कि शादी से पहले करिअर को महत्व देना जरूरी है। अभिभावकों चाहे उन पर कितना दबाव बना लें, लेकिन वे इसे नहीं मानते। ऐसे में अभिभावकों के लिए बेहतर यही होता है कि समय के साथ चलें और युवाओं की सोच के साथ तालमेल बैठाएं।

गीता में भी कहा गया है कि बीता हुआ कल और आने वाले कल में क्या घटित होगा यह तय करना आपके वर्ष में नहीं है। न ही क्या होने वाला है वो आपके सोचने से तय होने वाला है। यह तो कोई और तय करता है। इसकी चिंता आपको करने की जरूरत नहीं है। अगर आप इसकी चिंता करते हैं तो व्यर्थ ही है।

  आपके हिस्से में जो है वह सिर्फ आज है। आज को भरपूर जीने की कोशिश करने में ही समझदारी है। ज्यादातर लोग अपने संबंधों को जोड़ने और बनाने में इसी वजह से विफल साबित होते हैं। वे समय की अविरल धारा को समझ नहीं पाते। और जब आप उसे ढंग से समझेंगे ही नहीं तो सफलता मिलना भी संभव नहीं हो पाता। यह बात अभिभावकों को समझने की जरूरत है। इस मामले में अधिकांश अभिभावक इन्हीं बातों के शिकार हैं।

ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ घर के बड़े या माता पिता ऐसा फैसला लेते हैं जो नई पीढ़ी के बच्चों के लिहाज से आउटडेटेड होते हैं। परिणाम विपरीत आने पर अपनी विफलता के लिए समय को ही जिम्म्ेदार ठहराने लगते हैं। जबकि अगर वह अपने समय के साथ चलना सीख लें तो वह इससे बच सकते हैं। बेहतर अतीत के झूठे मोह में फंसे रहने के बजाय अपने समय की गति के अनुरूप स्वयं को ढाल सकते हैं और अपनी बहू व बेटे के साथ सुंदर और सुखमय जीवन जी सकते है पर माया और मोह से बाहर नहीं निकल पाने के कारण अधिकांश अभिभावकों के लिए खुद में यह बदलाव ला पाना संभव नहीं हो पाता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा दौर में जहां एक तरफ बहुत कुछ सही भी हो रहा है, वहीं बहुत कुछ ऐसा भी हो रहा है जो नहीं होना चाहिए, लेकिन ऐसा कब नहीं हुआ है! अच्छाई और बुराई दोनों का अस्तित्व और दोनों के बीच जंग हमेशा से चली आ रही हैै। इसलिए जरूरी है कि आप खुद को बदल लें।

समय के अनुरूप चलें। नई पीढ़ी की सोच को समझते हुए, क्योकि कालचक्र केवल घटनाओं को स्वरूप में नहीं बदलता बल्कि लोगों के व्यवहार, सोच, चाल चलन, संबधों व पहनावे आदि सभी को बदलता है। फिर अगर रिश्ते बदल रहे हैं तो उसे आप समय की मांग के रूप में क्यों नहीं ंदेखते; क्यों इस बदलाव के डर से खुद को आगे बढ़ने से रोकते हैं। यहां तक कि नई पीढ़ी को रिस्क लेने से रोका जाता है इसका जवाब किसी अभिभावक के पास नहीं होता है;

सही मायने में शादी जैसा अटूट बंधन जिदंगी का ऐसा पार्ट है जिसमें समझदारी और विवेक से काम लेना होता है। इस बंधन को जोड़ने में समय की भूमिका को आप नकार नहीं सकते। समय ही तय करता है कि संबंध किसका और किससे बनेगा।

 फिर किसी युवाओं की इच्छा की उपेक्षा केवल इस बात के लिए नहीं की जा सकती है कि उसकी सोच नई,फैशनेबल है और माॅड है। यह मूल्यों के अनुरूप नहीं है। मूल्य तो समय के हिसाब से बदलते हैं तो वह गलत कैसे हो सकते है। इसलिए सभी को इस बदलाव और परंपरागत मूल्य में सामंजस्य बैठकर बच्चों को जरूरी स्पेस देना चाहिए ताकि केवल शादी के संबंधों को लेकर एकराय हुआ जा सके बल्कि अन्य मुद्दों पर भी आपसी सहमति का निर्माण हो सके।

ऐसे अभिभावक जो समंजस्य बिठकार अरेंज मैरिज कर लेते हैं वो बहुत हद तक सही भी करते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि युवाओं को सबकुछ अपनी मर्जी से करने दें। उनकी भावनाओं का ख्याल रखते हुए जहां तक संभव हो परंपरा में व्याप्त अच्छाईयों को भी जारी रखा जा सकता है। और यह काम युवाओं को मानसिक रूप से साथ लेकर बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

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