Monday, December 6, 2010

रिश्तों को चाहिए खाद-पानी

डीके मिश्र
ऐसे ही नहीं पनपते रिश्ते। हम समाज और घर परिवार के मध्य रहते हैं। इसलिए हमें रिश्तों का मान करना ही आना चाहिए। पर हम तो धीरे-धीरे अपने लोगों से ही कटते जा रहे हैं। हमने अपने लिए एक नई दुनिया बनाने की कोशिश की है पर हम अपनी जड़ से ही कट गए हैं।

नई पीढ़ी के युवा रिश्तों को सही अर्थों में नहीं लेते। रिश्तों से उनका मतलब पति पत्नी और बच्चे तक सीमित होकर रह गया है। और जब जरूरत पड़ती है तो दुनिया को कोसने लग जाते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है युवा रिश्तों को जीना नहीं सीख रहे हैं। उसकी अहमियत को मानते नहीं, जबकि रिश्तों को भी जीना पड़ता है वो भी प्यार से। इससे पति पत्नी का रिश्ता और मजबूत होता है, क्योंकि इसी बहाने कई ऐसे बातें भी उभरकर सामने आती है, जो आपसी संबंधों को भी देती हैं मजबूती।

प्रत्येक बच्चा अपने माता और पिता के परिवार से निश्चित रूप से जुड़ा होता है। उसे अपने माता और पिता के परिवार के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। पर बहुत कम ही बच्चे ऐसे हैं जो अपने दादी-दादी नाना-नानी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, बुआ-फुफा, मौसा-मौसी, बहन-बहनोई, मामी-मामी के रिश्तों की जानकारी रखते हैं। कारण है कि वे इन परिवारों में यदा-कदा जाते हैं। वे उन्हें भी अंकल-आंटीनुमा जैसे कभी-कभार आने वालों की लिस्ट में रख लेता है।

करें भी क्या हमारी व्यस्तताएं इतनी अधिक बढ़ गई है। हमें आसमान की ऊंचाईयां जो छूनी है, बड़ा उद्योगपति बनना है। ये पारिवारिक रिश्ते तो बहुत निभा लिए अब हमें ग्लोबल बनने दीजिए। हमारे पास देर रात तक चैटिंग के लिए समय है पर अपने वृद्ध माता-पिता के पास दो घड़ी बैठने के पल नहीं।

माता-पिता कब से आस लगा रही थी कि बेटा त्योहार पर आयेगा। हम खूब सारी बातें करेंगे। पिता ने सोचा था कि अबकी बार बच्चे आएंगे तो छत बदलवा लेंगे। बारिश में बहुत परेशानी होती है। पर बच्चे आये जरूर, सबके लिए उपहार भी आये पर किसी के पास दो पल बैठने की फुरसत नहीं। सब आते ही अपने अपने कार्यों में व्यस्त हो गए।

मां पगलाई सी बच्चों के मनपसंद खाने बनाने में जुटी रही और जब उसने सोचा चलो अब तो फुरसत है कुछ कहेंगे कुछ सुनेंगे, पर ये क्या बच्चे तो अपनी दुनिया में मस्त हैं। जब भी मां वृहत परिवार के विषय में बताना चाहती हैं बड़ी उपेक्षा से अनसुना कर टिप्पणी दाग दी जाती है। क्या मां आप दूसरों के बारे में बातें क्यों करती हैं और मां अवाक है। क्यों रे ये दूसरे कौन हो गए! चुन्नी तेरी बुआ की और पूनम तेरी मामा की लड़की है। सब भूल गया क्या! क्या मां अपनी व्यस्तता में अपनी ही बहिन ध्यान रह जाये यही बहुत है किस किस को याद रखूं! मेरे पास बहुत काम है। इस सबके लिए समय नहीं।

आज हमें वह सबकुछ मिला है जिसकी चाहत हमने की थी। रिश्तों की परवाह नहीं की और अब परिणाम सामने है कि हमें बच्चों को पढ़ाई में उसके खुद के ही परिवार का चार्ट बनाना सिखाना पड़ता है। जब मैंने बच्चों से कहा कि अपने माता-पिता के परिवार के सभी सदस्यों के नाम लिखकर दिखाओ तो बामुश्किल उसने चार नाम लिखे। माता-पिता भाई का और बहन नाम पर कह दिया मेरे तो बहनें नहीं हैं। बार-बार पूछने पर कि बुआ, मौसी, मामा की लड़की कोई तो होगी उसका नाम लिखो। बड़ी मासूमियत से जबाव दिया वो मेरी बहिन कैसे हो सकती हैं। उसका तो भाई है।

अब ये नजरिया यदि बच्चों में विकसित हो रहा है तो हमें निश्चित रूप से सावधान हो जाने की जरूरत है। आखिर हम कहां जाना चाहते हैं! हमने अपने लिए क्या लक्ष्य चुना है! हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं! हम अपने ही हाथों अपने लिए गड्ढा क्यों खोद रहे हैं। विरासत में क्या देकर जा रहे हैं। हम अपनी संतति के लिए क्या इसी भविष्य के सपने संजोये थे हमारे जन्मदाताओं ने।

हम क्यों भूल रहें कि रिश्तो की पहली बुनियाद आपसी व्यवहार है। हम सुख दुख के कितने मौकों पर अपने संबंधियों के पास वक्त गुजारते हैं। कितनी शामें उनके साथ बीतती है। क्या कहा समय की कमी है तो मेरे दोस्त समय तो सबके पास ही 24 घंटे का होता है। इस काम को भी जरूरी मानोगे तो समय भी निकाल लोगो। एक बार ऐसा करके तो देखो। ये रिश्ते भी खाद पानी मांगाते हैं। जरा देकर तो देखिए कैसे लह लहाने लगेगी रिश्तों की बगिया । और कैसे महक उठेगा आपके प्यार का बागवां।

सच है कि जिन रिष्तों की हमें परवाह ही नहीं वह अब क्यों बचे रहंे। क्या अपने सगे संबंधियों के साथ हमारा यह बरताव स्वागत योग्य है। हमने अपनी जड़े इतनी खोखली कर ली हैं कि हम स्वयं को पहचानने से ही डरने लगे हैं।


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