Wednesday, December 8, 2010

रहें खुश, न करें निराधार शक

कोई भी बीमारी हो पर शक
की बीमारी न हो इस बात का
ख्याल हमेशा रखना चाहिए।
शक किसी भी रिश्ते को
खोखला कर देता है। इसलिए
अपने रिश्ते को सींचें सहेजें
और शक को अपनी जिंदगी से
दूर रखें ।


हर व्यक्ति ऐसा ही सोचता है कि शक करना सही नहीं है पर वह लगातार वही करता रहता है। पति पत्नी के बीच आपसी विश्वास किसी भी रिश्ते की रीढ़ है। आपसी विश्वास के बिना रिश्ते की मजबूती को कायम रख पाना आसान नहीं है। प्यार और विश्वास किसी भी भावनात्मक रिश्ते के दो अलग अलग आयाम हैं। यह संभव है कि आप किसी से प्यार करें, पर उस पर जरा सा भी विश्वास न करें। वहीं दूसरी ओर यह भी संभव है कि आप किसी पर आंख मूंदकर विश्वास करें। पर उससे प्यार न करें। एक संभावना तो यह भी बनती है कि आप किसी व्यक्ति से प्यार भी करें और उस पर पूरा विश्वास भी, पर वक्त के साथ किसी कारण से उस पर विश्वास पूरी तरह से खत्म हो जाए। एक बार आपसी विश्वास खत्म हो जाए तो उसे फिर से हासिल कर पाना आसान नहीं होता।


शक की इस बढ़ती बीमारी का एक कारण समाज में लगातार हो रहा बदलाव भी है। समाज में महिलाओं की स्थिति में तेजी से बदलाव हो रहा है। कामकाजी महिलाओं की संख्या में इजाफा हो रहा है। इसलिए कि अधिकांश दंपत्ति अब वर्किंग हैं। साथ वक्त बिताने का मौका दिन ब दिन कम होता जा रहा है। वहीं रिश्ते के बाहर अन्य लोगों से घुलने मिलने और बातचीत करने के अवसर बढे हैं।  विचारों का आदान प्रदान बढ़ा है। ये सभी परिस्थितियां एक साथ मिलकर रिश्ते को पहले से ज्यादा नाजुक व कमजोर बना रही हैं। इससे शक का घेरा और मजबूत होता रहता है। लेकिन इंसान को शक के घेरे को आपसी रिश्ते से दूर रखना चाहिए जब तक कि अकाट्य प्रमाण न मिल जाए। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि रिश्ते में शक के लिए जगह कैसे पैदा होती है।

रिश्ते में अविश्वास होने के तीन कारण होते हैं। पहला कारण यह कि आप दोनों में से कोई चाहकर भी एक दूसरे को वक्त नहीं दे पा रहे है। दुसरा कारण यह हो सकता है कि आप दोनों में से कोई एक हमेशा रिश्ते को लेकर असुरक्षित महसूस करता है और शक का तीसरा कारण एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर हो सकता है। पहले दो कारण तो ऐसे हैं जिनका बातचीत और काउंसलिंग आदि से हल ढूंढ पाना संभव है, पर शक के तीसरे कारण का एकमात्र हल यह है कि अपनी गलती को स्वीकारा और सुधारा जाए।

साथ रहें हमेशा
आपसी विश्वास के बीच शक की सूई को दूर करने के लिए सबसे पहले जरूरी है कि एक ऐसा माहौल तैयार करें जहां आप दोनों खुलकर पहले की तरह अपने मन की बातें परेशानियों और आशंकाएं शेयर कर सकें। रिश्ते को इस स्थिति तक पहुंचाने में गलती चाहे आप दोनों में से जिसकी भी हो बातचीत के दौरान बार बार इस मुद्दे को न उछालें।

अगर आप दोनों के बीच बढ़ते शक के कारण सही हैं तो एक दूसरे के साथ न बिता पा रहे हों तो सबसे पहले अपनी प्राथमिकताएं तय करें। प्रोफेशनल फ्रंट पर ऊंचाई तक पहुंचने के सपने देखने और उस दिशा में काम करने में कोई बुराई नहीं है। पर यह अपने रिश्ते की कुर्बानी देकर न करें। एक दूसरे को वक्त दें।

रिश्तों का आधार सिर्फ सच

संपादक महेश शर्मा 
दूध और पानी जब मिलते है, तो 
एक हो जाते हैं। प्रीत की सुंदर रीति 
देखिए कि यदि कपट की खटाई उसमें
 पड़ गई तो सारा रस चला जाता है।
 विवाह प्रेम का ऐसा ही मिलन है।



इसमें दो अस्तित्व पानी और दूध की तरह मिल जाते हैं। यदि इस मिलन की बुनियाद ही झूठ पर टिकी हो तब प्रेम और विश्वास का यह मिलन दूध की ही तरह फट जाता है, जिसे दुबारा पहले जैसा बनाना संभव ही नहीं है।
चूंकि शादी मानव जीवन का अभिन्न अंग है। रिश्ते को जोड़ने से पहले सबसे पहले ध्यान रखें कि आपस में कोई भी ऐसी बात दबी छुपी हो जो विवाह के बाद आपके साथी की मानसिक परेशानी का कारण बन सकता है तो आप उन्हें सबकुछ बता दें। इसके बाद आपकी जिम्मेदारी समाप्त। अब यह आपके साथी की इच्छा पर निर्भर है कि वह आपको उसी स्थिति में स्वीकार करता है या नहीं।

बहुत सी महिलाएं अपनी निजता और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए ससुराल से अलग रहना पसंद करती हैं। पर आपको अपने इस आइडिया को अच्छे माहौल में डिसकस करना चाहिए। यदि आपने अपने करिअर या सपनों को लेकर अलग शहर, अलग देश या अलग रहना पसंद किया है, तो इस बारे में भी खुलकर बात हो जानी चाहिए। अधिकतर पुरुष अपने करिअर में उन्नति के लिए या प्रमोशन के प्रलोभन में यह अपेक्षा रखते हैं कि उनकी पत्नी और परिवार उनका अनुसरण करें। इससे रिश्तों में दरार आती है।




इसी तरह आपस में स्वास्थ्य को लेकर भी चर्चा कर लें। इस मुद्दे पर भी एक दूसरे से कुछ न छुपाएं। नही ंतो शादी के बाद ये समस्याएं होने पर यह संबंधों को तोड़ने का कारक बनता है। पति पत्नी छला महसूस करने लगते हैं। तभी से उनके जीवन में तनाव व्याप्त हो जाता है। वह घर और बाहर दोनों ही जगह सामान्य जिंदगी नहीं जी पाते। कई बार तो मन इतना आहत करती है कि उससे सब छुपाया गया। वह इस रिश्ते के प्रति सहज नहीं हो पाते।
आप अपने करिअर और लक्ष्यों पर भी बात कर लें, क्योंकि आपको एक हाउसवाइफ की तरह रखने की अपेक्षा आपके पति की हो सकती है, जबकि हो सकता है कि आप अपने करिअर के प्रति गंभीर हों। बाद में ऐसी बातें अक्सर विवाद का कारण बनती हैं।

जिंदगी को जीने के लिए वित्तीय मसले एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अक्सर लोग संकोच के कारण बात नहीं कर पाते। बाद में इस विषय पर की गई अतिरिक्त सुरक्षा अविश्वास का कारण बनती है। चूंकि इन मामलों में आजकल लड़कियां भी रूचि लेने लगी हैं, जो विवाद का कारण बनता है। ये चिंता पति-पत्नी के संबंधों को अस्वभाविक बना देता है।

प्यार को पहचान देने की कोशिश



                                                          डी के मिश्र
आज के युवा जितने स्मार्ट और माॅडर्न हैं 
उतने ही अपनी परंपरा और रस्मों-रिवाज
 से भी जुड़े हैं। उनकी यह कोशिश होती है 
कि वे घर परिवार और समाज को साथ लेकर
 चलें। यही कारण है कि वे शादी अपनी पसंद 
की लड़की या लड़का से करना चाहते हैं, 
लेकिन माता पिता के आशीर्वाद लेने के 
ख्वाहिशमंद भी होते हैं।


शादी के नाम से ही मन में रोमांस और रोमांच की अनुभूति होती है। बात आज के युवाओं की हो तो वे अपने रोमांस यानी प्यार को आगे बढ़ाते हुए अपनी पसंद से शादी करना चाहते हैं। इसे आप लव मैरेज कहें या फिर कुछ और पर वे लव मैरेज को अरेंज मैरेज की तरह करना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में शादी तो उसी से करना चाहते हैं जिससे प्यार किया है जीवन भर साथ निभाने का वायदा किया है पर अपने माता पिता की सहमति से ताकि उनका आशीर्वाद भी मिले सके और वे सामाजिक तौर तरीके साथ ही इस रिश्ते को आगे बढ़ा सकेें।  दरअसल आज के युवा कितने भी माडर्न हो गए हों, अपनी परंपरा और संस्कृति को वह छोड़ना नहीं चाहते। ऐसा इसलिए कि आज का युवा नासमझ नहीं है। वे जानते हैं कि विवाह केवल दो दिलों का मिलन नहीं अपितु दो परिवारों का भी मिलन है। दो परिवार मिलकर अपनी परंपरा के अनुसार ही शादी की व्यवस्था करते हैं, चाहे वे किसी भी जाति के हों, क्योंकि भारतीय समाज में शादी के विधि विधान और नियम एक परंपरा के रूप में होते रहे हैं। इसी रीति रिवाज और परंपरा के कारण युवा अरेंज मैरेज करना चाहते हैं। लड़का हो या लड़की अपनी पसंद के साथी को ही जीवनसाथी बनाना चाहते हैं। पर अपने माता पिता की सहमति से। यदि माता पिता राजी नहीं हो रहे हैं तो वे बाहर शादी कर सकते हैं, लेकिन वे ऐसा करके अपने माता पिता को दुखी नहीं करना चाहते हैं। इसलिए वे चाहते हैं कि उनके पैरेंट्स उनकी शादी पर सहमति की मुहर लगा दें। यदि वे शादी से खुश होंगे तो वे भी खुश रह पाएंगे। वे जानते हैं कि अरेंज मैरेज से उन्हें पैरेंट्स का प्यार और आशीर्वाद मिलता रहेगा। यदि शादी के इस टेªंड का मनोवैज्ञानिक कारणों में जाते हैं तो यह पता चलता है कि युवा खुद को किसी न किसी तरह से असुरक्षा के भाव से ग्रस्त हो चले हैं।  मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि शादी में लड़के और लड़की वालों का साथ और सहमति मिलने से वे खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। यदि वे परिवार की सहमति के बिना ही शादी करते हैं तो उन्हें किसी प्रकार का पारिवारिक सहयोग और सहारा नहीं मिल पाता है। यह बात भी वे भली भांति जानते हैं। इसलिए वे खुद से लव मैरेज करने पर ससुराल में इज्जत मिलेगी। आज का युवा यह सब इसलिए सोचता है कि किसी भी बच्चे को उसके बचपन से ही अपने माता पिता और परिवार से कुछ संस्कार अवश्य मिलते हैं। यही संस्कार उसके मन में यह बोध पैदा कर रहा है कि सबके सामने शादी करके मान सम्मान बना रहता है, पर भागकर शादी करने या बिना पारिवारिक सहमति के शादी करने पर वह सम्मान नहीं रह पाता। समाज के लोग हमेशा यही कहेंगे कि उसने भागकर शादी की है। अरेंज मैरेज में जो खुशी मिलती है, उसे लड़का या लड़की मिस नहीं करना चाहते। लव मैरेज या तो कोर्ट में होगा या मंदिर में। ऐसा करने पर बस कुछ दोस्तों का साथ रहेगा। न तो अपने परिवारों का साथ मिलेगा और न शादी के धूम धड़ाके ही होंगे। बाॅक्स अरेंज मैरेज में अपने परिवार, रिश्तेदार और दोस्तों का साथ तो मिलता ही है, साथ ही इसकी तैयारी करने का मजा और रीति रिवाजों को निभाने की खुशी भी मिलती है। बारात के साथ डांस करना हो या जयमाला के समय की नोक-झोंक वर वधू भी इन सभी चीजों को एंज्वाॅय करते हैं। इसलिए भी युवा आज अपनी पसंद से शादी करने पर भी अरेंज मैरेज करना पसंद करते हैं।

खुद से प्यार करें


Dhirendra Mishr
जीवन के लंबे सफर में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। नव दंपत्तियों के लिए तो यह और भी कठिन होता है। ऐसे अधिकांश लोग खुद का ख्याल रखना छोड़ देते हैं। लेकिन जिस दिन आप अपने लिए जीना सीख लेते है उसी दिन से आप तरोताजा अनुभव करने लगते हैं। आप इधर उधर की बातों में बिना उलझे खुशी से हर काम कर लेंगे। जिंदगी का सफर कदम दर कदम तय करते करते कभी कभी जीवन में हताशा, थकान, उब और निराशा महसूस होना कोई नई बात नहीं है। लेकिन ऐसा होने पर यह समझना जरूरी हो जाता है कि आप जीवन जीने के लिए जरूरी ऊर्जा शरीर में बनाए रख पा रहे हैं या नहीं। अगर ऐसा नहीं कर पा रहे है तो आपका जीवन घुटन और अवसाद से भरने का संकेत है। चूंकि भागम भाग जीवन में ऐसा कर पाना लोगों के लिए संभव नहीं हो पाता इसलिए जरूरी है कि स्वस्थ जीवनशैली पर ध्यान दें। वहीं जिनका जीवन उमंग और उत्साह से सराबोर है तो जिंदगी खुशियों से भरी और रंग बिरंगी लगने लगती है। इसके लिए जरूरी है कि आप हमेशा ऊर्जावान बने रहें। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तो और भी आवश्यक है। निरोगी काया अपने आपको चुस्त दुरूस्त रखने में आप स्वयं ही सबसे ज्यादा मददगार साबित हो सकते हैं। बेवजह बनावटी जीवनशैली के पीछे न भागें। सरल, सहज व संयमित जीवन जींए। उम्र के अनुसार संतुलित भोजन करें तथा नियमित दिनचर्या का पालन करें। नियमित रूप से सुबह सैर करने की आदत डालें। स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें। समय नहीं मिलता जैसे नकारात्मक  विचारों को मन से निकाल दें और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की ठान लें । वक्त के बने पाबंद किसी भी काम को सही समय पर दी गई सीमा में पूरा करना ही समय प्रबंधन कहलाता है। आप गृहिणी हों या कामकाजी, अपने हर काम के लिए समयसीमा निर्धारित कर लें कि इस समय तक यह काम हर हाल में पूरा करना है। यदि इसी तरह पूरे दिन की रूपरेखा आपके दिमाग में होगी तो आप सारे कार्य कुशलतापूर्वक पूरे कर लेंगी। साथ ही योजनाबद्ध तरीके से काम करने से मन में चुस्ती फुर्ती और दिमाग में सक्रियता बनी रहती है। पौष्टिक आहार अगर आप चाहते हैं कि ऊर्जावान बने रहें तो अपने आहार में प्रोटीन से भरपूर चीजें शामिल करें। सुबह का नाश्ता जरूर करें। दोपहर के खाने में काब्रोहाइड्रेट, फाइबर व प्रोटीनयुक्त पदार्थों को प्रमुखता दें। प्रोटीन के लिए अंकुरित अनाज, मेवे, कम वसारहित पनीर, वसारहित दूध और दही लें। फलों में सेब और संतरा का प्रयोग अवश्य करें। व्यायाम करें इससे मस्तिष्क में ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है यदि अधिक न कर सकें तो घर की सीढ़ियां ही तीन चार बार चढ़े उतरें। रेडियो में आने वाले गाने के साथ डांस करें। गाना गाएं और गुनगुनाएं, ये सारी क्रियाएं आपके अंदर निश्चय ही खुशी भर देंगी। यह खुशी ही तो आपकी ऊर्जा है। अरोमाथेरेपी लें यह थकान दूर करने और खुद को ऊर्जा से भरने के लिए आॅरेंज, लैवेंडर पिपरमिंट या लेमन ग्रास एसेंशियल आॅयल का प्रयोग करें। नहाने के पानी में रोजमेरी या पिपरमिंट एसेंशियल आॅयल की एक दो बूंदें डाल लें।
संपादक महेश शर्मा

Monday, December 6, 2010

चलें संग संग

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पं. महेश शर्मा


वैसी भी शादी को लेकर आजके युवा काफी कंशस हो गए हैं। वह अब सुंदर और केयर करने वाली पत्नी ही नहीं चाहिए। ऐसी पत्नी भी चाहिए कि जिंदगी के हर मोड़ पर साझीदार बन सके। वह समझदार और आर्थिक मामलों में सहयोगी भी भूमिका में आने वाली हो। ठीक उसी तरह लड़कियों की पसंद में भी बदलाव आया है। लड़कियों को ऐसे लड़के पसंद हैं जो योग्य हो, सुंदर हो और जमाने के साथ चलने वाला है। वर्तमान जिंदगी जीने को लेकर उसमें खर्च करने की क्षमता भी हो

यानी शादी केवल रिश्तों को जोड़ने का खेल नहीं, बल्कि सही मायनों में कंधे से कंधे मिलाकर जिंदगी जीने का माध्यम हो गया है। हमसफर शब्द को सही मायने में आज के युवा सही अर्थ दे पा रहे हैं। खासतौर से करिअर के मुद्दे पर समझौता करना उन्हें स्वीकार नहीं है, फिर बात शादी में बंधने की हो या फिर किसी और की इससे कोई फर्क नहीं पडता।

महानगर से लेकर कस्बाई क्षे़त्रों की लड़कियां भी यह मानने लगी हैं कि शादी से पहले करिअर को महत्व देना जरूरी है। अभिभावकों चाहे उन पर कितना दबाव बना लें, लेकिन वे इसे नहीं मानते। ऐसे में अभिभावकों के लिए बेहतर यही होता है कि समय के साथ चलें और युवाओं की सोच के साथ तालमेल बैठाएं।

गीता में भी कहा गया है कि बीता हुआ कल और आने वाले कल में क्या घटित होगा यह तय करना आपके वर्ष में नहीं है। न ही क्या होने वाला है वो आपके सोचने से तय होने वाला है। यह तो कोई और तय करता है। इसकी चिंता आपको करने की जरूरत नहीं है। अगर आप इसकी चिंता करते हैं तो व्यर्थ ही है।

  आपके हिस्से में जो है वह सिर्फ आज है। आज को भरपूर जीने की कोशिश करने में ही समझदारी है। ज्यादातर लोग अपने संबंधों को जोड़ने और बनाने में इसी वजह से विफल साबित होते हैं। वे समय की अविरल धारा को समझ नहीं पाते। और जब आप उसे ढंग से समझेंगे ही नहीं तो सफलता मिलना भी संभव नहीं हो पाता। यह बात अभिभावकों को समझने की जरूरत है। इस मामले में अधिकांश अभिभावक इन्हीं बातों के शिकार हैं।

ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ घर के बड़े या माता पिता ऐसा फैसला लेते हैं जो नई पीढ़ी के बच्चों के लिहाज से आउटडेटेड होते हैं। परिणाम विपरीत आने पर अपनी विफलता के लिए समय को ही जिम्म्ेदार ठहराने लगते हैं। जबकि अगर वह अपने समय के साथ चलना सीख लें तो वह इससे बच सकते हैं। बेहतर अतीत के झूठे मोह में फंसे रहने के बजाय अपने समय की गति के अनुरूप स्वयं को ढाल सकते हैं और अपनी बहू व बेटे के साथ सुंदर और सुखमय जीवन जी सकते है पर माया और मोह से बाहर नहीं निकल पाने के कारण अधिकांश अभिभावकों के लिए खुद में यह बदलाव ला पाना संभव नहीं हो पाता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा दौर में जहां एक तरफ बहुत कुछ सही भी हो रहा है, वहीं बहुत कुछ ऐसा भी हो रहा है जो नहीं होना चाहिए, लेकिन ऐसा कब नहीं हुआ है! अच्छाई और बुराई दोनों का अस्तित्व और दोनों के बीच जंग हमेशा से चली आ रही हैै। इसलिए जरूरी है कि आप खुद को बदल लें।

समय के अनुरूप चलें। नई पीढ़ी की सोच को समझते हुए, क्योकि कालचक्र केवल घटनाओं को स्वरूप में नहीं बदलता बल्कि लोगों के व्यवहार, सोच, चाल चलन, संबधों व पहनावे आदि सभी को बदलता है। फिर अगर रिश्ते बदल रहे हैं तो उसे आप समय की मांग के रूप में क्यों नहीं ंदेखते; क्यों इस बदलाव के डर से खुद को आगे बढ़ने से रोकते हैं। यहां तक कि नई पीढ़ी को रिस्क लेने से रोका जाता है इसका जवाब किसी अभिभावक के पास नहीं होता है;

सही मायने में शादी जैसा अटूट बंधन जिदंगी का ऐसा पार्ट है जिसमें समझदारी और विवेक से काम लेना होता है। इस बंधन को जोड़ने में समय की भूमिका को आप नकार नहीं सकते। समय ही तय करता है कि संबंध किसका और किससे बनेगा।

 फिर किसी युवाओं की इच्छा की उपेक्षा केवल इस बात के लिए नहीं की जा सकती है कि उसकी सोच नई,फैशनेबल है और माॅड है। यह मूल्यों के अनुरूप नहीं है। मूल्य तो समय के हिसाब से बदलते हैं तो वह गलत कैसे हो सकते है। इसलिए सभी को इस बदलाव और परंपरागत मूल्य में सामंजस्य बैठकर बच्चों को जरूरी स्पेस देना चाहिए ताकि केवल शादी के संबंधों को लेकर एकराय हुआ जा सके बल्कि अन्य मुद्दों पर भी आपसी सहमति का निर्माण हो सके।

ऐसे अभिभावक जो समंजस्य बिठकार अरेंज मैरिज कर लेते हैं वो बहुत हद तक सही भी करते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि युवाओं को सबकुछ अपनी मर्जी से करने दें। उनकी भावनाओं का ख्याल रखते हुए जहां तक संभव हो परंपरा में व्याप्त अच्छाईयों को भी जारी रखा जा सकता है। और यह काम युवाओं को मानसिक रूप से साथ लेकर बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

सुंदर दिखें और दिखाएं

डीके मिश्र 
शादी का मौसम शुरू हो गया है। सभी चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा सुंदर दिखूं। लोगों की नजरें कहीं टिके तो उन्हीं पर आकर। ऊपर से भीनी-भीनी सी ठंड की सिहरन महिलाओं की सुंदरता को चार चांद लगाने को तैयार हैं। फिर ब्यूटी क्रेजी होना कोई बुराई भी नहीं है। ऐसे में अगर आप भारतीय पारंपरिक परिधान साड़ी में हैं तो आप हर लिहाज से सुंदरता के मायने में दूसरों पर भारी साबित हो सकती हैं।

साड़ी ऐसा पहनावा है, जिसमें हर उम्र की महिलाओं की सुंदरता को निखारने की क्षमता है। हर कद काठी को यह ग्लैमरस और आकर्शक अंदाज दे सकता है। फैशन आते हैं और चले जाते हैं पर साड़ी की सुंदरता में न तो कमी आई है और न ही इसका क्रेज कम होने वाला है। रैंप से लेकर रूम तक साड़ी की सुंदरता आज भी बरकरार है। पामेला एंडरसन को ही देख लीजिए। पश्चिमी सभ्यता की यह महिला भारत आई तो साड़ी में। बिग बाॅस घर के शिफाॅन साड़ी के बीच उसकी सुंदरता को देख भला कौन नहीं इतरा सकता है।

वैसे भी धारावाहिक के इस दौर में जहां महिलाएं टीवी से चिपकी होती हैं साड़ियां फैशन स्टेटमेंट है। यह तो अब हाॅट, ग्लैमरस और सबसे ज्यादा कामुक दिखने का ऐसा पहनावा बन गया है जिसमें सबसे ज्यादा सुंदर दिखा जा सकता है। और अगर सलीके से साड़ी पहनना जानती है तो लोग भी इसकी तारीफ करते हैं।

ऐसे में आप भी साड़ी पहनने का अंदाज बदल दे ंतो भारतीय परिधान में हाॅट व ग्लैमरस लग सकती हैं। साड़ी ही एक ऐसा परिधान है, जिसे पहनने के अंदाज से मोटे से पतला व पतले से मोटा लगा जा सकता है। बिना टमी टाइटनिंग कराए यह आपके शरीर की कुछ कमियों को छुपाने में भी मददगार होती हैं।


सिल्की ब्यूटी 
रिच लुक पाने के लिए सिल्क की साड़ियां सबसे बेस्ट होती हैं। इसे आप आॅफिस और शादी जैसे अवसरों पर भी आसानी से पहन सकती हैं; आॅफिस में पहनने के लिए केवल बाॅर्डर वाली सिल्क की साड़ियां खरीदें। जबकि षादी व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शिरकत करने के लिए डिजाइनदार और थोडा चटक होना जरूरी है।
सदाबहार सूती  
काॅटन साड़ी सदाबहार श्रेणी में आती है। यह आॅफिस में पहनने के लिए एक बेस्ट परिधान है। यह आपको एक एलिगेंट लुक देगी। काॅटन की साड़ी पहनने की एक जरूरी शर्त यह है कि आपको इस साड़ी को पहनने का तरीका आना चाहिए। इसके सहारे आप शरीर के हर अंग को उभारा जा सकता हैं एवं उसे सुंदर दिखाया जा सकता है। यह क्षमता केवल साड़ी में और किसी भी पहनावे में नहीं।
बनारसी साड़ी
हालांकि बनारसी साड़ी आजकल प्रचलन में नहीं है, लेकिन क्लासिकल लुक देने में यह आज भी काफी बेहतर है। हां इतना जरूर ख्याल रखें की बनारसी साड़ी पहनने जा रही हैं तो गहरे रंगों में ही पहनें। शुभ अवसरों के लिए बनारसी और कांजीवरम की साड़ियां खरीदना बेहतर रहता है।
स्लिम ऐंड ट्रीम बाॅडी 
यदि आप पतली हैं तो बड़े-बड़े फ्लोवर प्रिंट की साड़ियां आप पर खूब फबेंगी। इससे आपका शरीर भरा-भरा लगेगा। आपका व्यक्तित्व आकर्षक नजर आएगा। ज्योमेट्रिक प्रिंट्स भी आपके लिए बेहतर सिलेक्शन साबित होंगे। जार्जेट, शिफाॅन या सिल्क की साड़ियां आपके आकर्शक व्यक्तित्व के लिए नितांत आवश्यक है।
फैट बाॅडी 
मोटापा महिलाओं की एक आम समस्या है। मोटापे की वजह से टमी को लेकर महिलाएं परेशान रहती हैं। फैटी लेडी को कपडों के चर पर गौर फरमाना सबसे ज्यादा जरूरी है। अगर आपका कद छोटा व वजन ज्यादा है तो आप छोटे फ्लोवर प्रिंट वाली साड़ियों का ही चयन करें।
पहनने के स्टाइल 
जरूरी नहीं है कि आप जिस स्टाइल में साड़ी पहनती हैं उसी को रिपिट करें। साड़ी पहनने के कई तरीके हैं। आप अपनी हाइट, हेल्थ और मौके के अनुसार उसे चुन सकती हैं। जैसे फ्री पल्लू, पिनअप साड़ी, उल्टा पल्लू, सीधा पल्लू, लहंगा स्टाइल साड़ी, मुमताज स्टाइल साड़ी, बंगाली साड़ी आदि स्टाइलों की साड़ियों को आप अपनी पसंद से चेंज करके पहन सकती हैं।

इसके अलावा नित नए फैशनेबल स्टाइल साड़ी में आ रहे हैं। ऐसे में बहुत महंगी साड़ी न खरीदते हुए भी आप थोड़ी सी सूझबूझ से कम कीमत में अपनी साड़ियों को घर पर ही सजा कर आप न्यू लुक दे सकती हैं, जो आपकी सुंदरता को चार चांद लगा सकते हैं।

- प्लेन साड़ी में प्लेट्स और पल्लू पर बड़े सितारे लगाएं बाकी साड़ी प्लेन ही रहने दें।
- साड़ी को मनचाहा ट्रेस देकर उसमें सितारे, कुंदन, मिरर, पाइप नाका टांकी आदि वर्क करें फिर पहनें।
- प्रिंटेंड साड़ी में चिपकने वाले सितारों का उपयोग करें।
- अपनी साड़ी में बंधेज वर्क कराकर आप उसे एक अनोखा रूप दे सकती है।
- नेट की साड़ी आजकल बहुत प्रचलन में हैं। नेट पर मनचाही डिजाइन में वर्क करके उसे न्यू इफेक्ट दें।
- व्हाइट और ब्लैक ऐसे कलर हैं, जिस पर कोई भी वर्क करके आप पार्टी की शान बन सकती हैं।
- बाॅर्डर और पल्लू को जरदौजी वर्क से डेकोरेट करें। बाॅर्डर को लहरदार भी बना सकती हैं।
- किसी भी इवनिंग पार्टी के लिए साड़ी में मोती का वर्क करें, जो आपकी साड़ी को सोबर लुक देगा।
- प्लेन जार्जेट की साड़ी पर साॅटन के फूलों का वर्क करें, जो बहुत ही शानदार लगेगाा।
- अपनी साड़ी आकर्षक बनाने के लिए उस पर कढ़ाई करें। जैसे काथा वर्क, नाॅटस्टिच, सिंधी कढाई, लेजी-डेजी आदि कढ़ाई से साड़ी बहुत लुभावनी लगेगी।
- अपनी साड़ी में एम्ब्राॅइडरी करवाकर आप उसे स्पेशल बना सकती हैं।
- आजकल विभिन्न प्रकार की लेस चलन में है। अपनी किसी साड़ी में लेस लगाकर उसे आप हैवी बना सकती है।
- साॅटन या अन्य किसी प्रिंटेड कपड़े की लेसनुमा बाॅर्डर भी आप अपनी साड़ी में लगा सकती हैं।
- फेब्रिक कलर टृयूब, जो आजकल हर कलर में उपलब्ध हैं, से आप साड़ी पर कम समय और कम लागत में वर्क करके साड़ी को पार्टी वियर बना सकती है।

रिश्तों को चाहिए खाद-पानी

डीके मिश्र
ऐसे ही नहीं पनपते रिश्ते। हम समाज और घर परिवार के मध्य रहते हैं। इसलिए हमें रिश्तों का मान करना ही आना चाहिए। पर हम तो धीरे-धीरे अपने लोगों से ही कटते जा रहे हैं। हमने अपने लिए एक नई दुनिया बनाने की कोशिश की है पर हम अपनी जड़ से ही कट गए हैं।

नई पीढ़ी के युवा रिश्तों को सही अर्थों में नहीं लेते। रिश्तों से उनका मतलब पति पत्नी और बच्चे तक सीमित होकर रह गया है। और जब जरूरत पड़ती है तो दुनिया को कोसने लग जाते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है युवा रिश्तों को जीना नहीं सीख रहे हैं। उसकी अहमियत को मानते नहीं, जबकि रिश्तों को भी जीना पड़ता है वो भी प्यार से। इससे पति पत्नी का रिश्ता और मजबूत होता है, क्योंकि इसी बहाने कई ऐसे बातें भी उभरकर सामने आती है, जो आपसी संबंधों को भी देती हैं मजबूती।

प्रत्येक बच्चा अपने माता और पिता के परिवार से निश्चित रूप से जुड़ा होता है। उसे अपने माता और पिता के परिवार के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। पर बहुत कम ही बच्चे ऐसे हैं जो अपने दादी-दादी नाना-नानी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, बुआ-फुफा, मौसा-मौसी, बहन-बहनोई, मामी-मामी के रिश्तों की जानकारी रखते हैं। कारण है कि वे इन परिवारों में यदा-कदा जाते हैं। वे उन्हें भी अंकल-आंटीनुमा जैसे कभी-कभार आने वालों की लिस्ट में रख लेता है।

करें भी क्या हमारी व्यस्तताएं इतनी अधिक बढ़ गई है। हमें आसमान की ऊंचाईयां जो छूनी है, बड़ा उद्योगपति बनना है। ये पारिवारिक रिश्ते तो बहुत निभा लिए अब हमें ग्लोबल बनने दीजिए। हमारे पास देर रात तक चैटिंग के लिए समय है पर अपने वृद्ध माता-पिता के पास दो घड़ी बैठने के पल नहीं।

माता-पिता कब से आस लगा रही थी कि बेटा त्योहार पर आयेगा। हम खूब सारी बातें करेंगे। पिता ने सोचा था कि अबकी बार बच्चे आएंगे तो छत बदलवा लेंगे। बारिश में बहुत परेशानी होती है। पर बच्चे आये जरूर, सबके लिए उपहार भी आये पर किसी के पास दो पल बैठने की फुरसत नहीं। सब आते ही अपने अपने कार्यों में व्यस्त हो गए।

मां पगलाई सी बच्चों के मनपसंद खाने बनाने में जुटी रही और जब उसने सोचा चलो अब तो फुरसत है कुछ कहेंगे कुछ सुनेंगे, पर ये क्या बच्चे तो अपनी दुनिया में मस्त हैं। जब भी मां वृहत परिवार के विषय में बताना चाहती हैं बड़ी उपेक्षा से अनसुना कर टिप्पणी दाग दी जाती है। क्या मां आप दूसरों के बारे में बातें क्यों करती हैं और मां अवाक है। क्यों रे ये दूसरे कौन हो गए! चुन्नी तेरी बुआ की और पूनम तेरी मामा की लड़की है। सब भूल गया क्या! क्या मां अपनी व्यस्तता में अपनी ही बहिन ध्यान रह जाये यही बहुत है किस किस को याद रखूं! मेरे पास बहुत काम है। इस सबके लिए समय नहीं।

आज हमें वह सबकुछ मिला है जिसकी चाहत हमने की थी। रिश्तों की परवाह नहीं की और अब परिणाम सामने है कि हमें बच्चों को पढ़ाई में उसके खुद के ही परिवार का चार्ट बनाना सिखाना पड़ता है। जब मैंने बच्चों से कहा कि अपने माता-पिता के परिवार के सभी सदस्यों के नाम लिखकर दिखाओ तो बामुश्किल उसने चार नाम लिखे। माता-पिता भाई का और बहन नाम पर कह दिया मेरे तो बहनें नहीं हैं। बार-बार पूछने पर कि बुआ, मौसी, मामा की लड़की कोई तो होगी उसका नाम लिखो। बड़ी मासूमियत से जबाव दिया वो मेरी बहिन कैसे हो सकती हैं। उसका तो भाई है।

अब ये नजरिया यदि बच्चों में विकसित हो रहा है तो हमें निश्चित रूप से सावधान हो जाने की जरूरत है। आखिर हम कहां जाना चाहते हैं! हमने अपने लिए क्या लक्ष्य चुना है! हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं! हम अपने ही हाथों अपने लिए गड्ढा क्यों खोद रहे हैं। विरासत में क्या देकर जा रहे हैं। हम अपनी संतति के लिए क्या इसी भविष्य के सपने संजोये थे हमारे जन्मदाताओं ने।

हम क्यों भूल रहें कि रिश्तो की पहली बुनियाद आपसी व्यवहार है। हम सुख दुख के कितने मौकों पर अपने संबंधियों के पास वक्त गुजारते हैं। कितनी शामें उनके साथ बीतती है। क्या कहा समय की कमी है तो मेरे दोस्त समय तो सबके पास ही 24 घंटे का होता है। इस काम को भी जरूरी मानोगे तो समय भी निकाल लोगो। एक बार ऐसा करके तो देखो। ये रिश्ते भी खाद पानी मांगाते हैं। जरा देकर तो देखिए कैसे लह लहाने लगेगी रिश्तों की बगिया । और कैसे महक उठेगा आपके प्यार का बागवां।

सच है कि जिन रिष्तों की हमें परवाह ही नहीं वह अब क्यों बचे रहंे। क्या अपने सगे संबंधियों के साथ हमारा यह बरताव स्वागत योग्य है। हमने अपनी जड़े इतनी खोखली कर ली हैं कि हम स्वयं को पहचानने से ही डरने लगे हैं।